सच्चाई की परीक्षा
बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से राज्य में एक न्यायप्रिय राजा राज करता था, जिसका नाम था राजा हेमदत्त। राजा हेमदत्त अपने राज्य में सच्चाई, न्याय और धर्म का पालन करने के लिए प्रसिद्ध था। वह हमेशा अपने राज्य के नागरिकों के मामलों में निष्पक्ष और ईमानदार रहता था।
राजा हेमदत्त का विश्वास था कि सच्चाई से बढ़कर कोई और बल नहीं है। वह अपने प्रजा से यह उम्मीद करता था कि वे हमेशा सच बोलें और किसी भी परिस्थिती में झूठ का सहारा न लें। इसी कारण से, उसने अपने राज्य में एक नियम लागू किया था कि जो भी व्यक्ति झूठ बोलकर किसी का भला करना चाहता है, उसे दंडित किया जाएगा।
सच्चाई की परीक्षा
एक दिन राज्य में एक बड़ा विवाद उत्पन्न हुआ। एक बहुत ही अमीर व्यापारी ने आरोप लगाया कि एक छोटे से किसान ने उसकी संपत्ति चुरा ली है। व्यापारी ने राजा से शिकायत की कि किसान ने रातों-रात उसकी भूमि पर कब्जा कर लिया और उसकी बेशकीमती वस्तुएं चुरा ली हैं।
राजा हेमदत्त ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए आदेश दिया कि दोनों पक्षों को अदालत में पेश किया जाए। जब व्यापारी और किसान अदालत में आए, तो राजा ने दोनों से अपना पक्ष सुनने की शुरुआत की।
व्यापारी ने कहा:
"महाराज, यह किसान एक झूठा आदमी है। उसने रात के अंधेरे में मेरी संपत्ति चुराई और मुझे अपमानित किया।"
किसान ने शांति से जवाब दिया:
"महाराज, मैं एक ईमानदार व्यक्ति हूं। मैंने किसी की संपत्ति नहीं चुराई। मुझे नहीं पता कि व्यापारी ऐसा क्यों कह रहा है।"
राजा हेमदत्त ने दोनों पक्षों से सबूत मांगे, लेकिन कोई ठोस सबूत किसी के पास नहीं था। मामले की गहराई में जाने के बाद, राजा हेमदत्त ने फैसला किया कि वह इस विवाद का समाधान एक अलग तरीके से करेंगे।
राजा ने कहा:
"मैं इस मामले में एक अद्भुत परीक्षा लूंगा, जो केवल सच्चाई को सामने लाएगी।"
राजा ने आदेश दिया कि व्यापारी और किसान दोनों को एक कक्ष में बंद किया जाए, और उन्हें एक कागज़ पर लिखने के लिए कहा गया। कागज़ पर लिखा गया था:
"जो व्यक्ति सच्चा है, वह अपने मन की बात बिना डर के सामने रखेगा, लेकिन जो झूठा है, वह डर के कारण अपनी बात छिपाएगा।"
राजा ने फिर से दोनों से पूछा:
"अब, तुम दोनों में से कौन सच्चा है और कौन झूठा, यह कागज़ पर लिखकर मुझे दे दो।"
सच्चाई की परीक्षा का परिणाम
जब व्यापारी कागज़ पर लिखने लगा, तो उसकी हाथें कांपने लगीं और उसकी लिखाई असामान्य हो गई। लेकिन किसान ने अपने कागज़ पर बिना किसी डर के साफ-साफ लिखा:
"मैं सच्चा हूं, मैंने किसी की संपत्ति नहीं चुराई।"
राजा हेमदत्त ने दोनों के कागज़ों को देखा। व्यापारी का कागज़ गड़बड़ाया हुआ और अस्पष्ट था, जबकि किसान का कागज़ साफ-सुथरा और सीधा था। राजा ने तुरंत समझ लिया कि व्यापारी झूठ बोल रहा था।
राजा हेमदत्त ने कहा:
"किसान ने सच्चाई को बिना डर के लिखा और व्यापारी ने झूठ बोला। व्यापारी का झूठ साफ-साफ सामने आ चुका है।"
राजा ने व्यापारी को कठोर दंड दिया और उसकी संपत्ति को जब्त कर लिया। वहीं किसान को सम्मानित किया और उसे मुआवजा दिया।
बेताल का प्रश्न
बेताल ने राजा विक्रम से पूछा:
"राजा हेमदत्त ने सच्चाई की परीक्षा ली, लेकिन क्या यह तरीका उचित था? क्या एक शासक को इस तरह से किसी के खिलाफ निर्णय लेना चाहिए?"
राजा विक्रम का उत्तर
राजा विक्रम ने उत्तर दिया:
"राजा हेमदत्त ने एक बुद्धिमानी से फैसला लिया। कभी-कभी, सच्चाई को पहचानने के लिए हमें अप्रत्यक्ष तरीकों का सहारा लेना पड़ता है। जब दो पक्षों के पास कोई ठोस सबूत नहीं होते, तो हमें उनके आचरण, शब्दों और उनके व्यवहार को देखकर सही निर्णय लेना होता है। राजा का कर्तव्य है कि वह सत्य को सामने लाए, और राजा हेमदत्त ने वही किया।"
कहानी की शिक्षा
- सच्चाई हमेशा सामने आती है, चाहे वह किसी भी तरीके से सामने आए।
- सच्चा व्यक्ति कभी भी डर के बिना अपनी बात सामने रखता है।
- शासक का कर्तव्य है कि वह सत्य का पालन करे और न्यायपूर्ण निर्णय ले।