राजा की सत्यनिष्ठा की कहानी
प्राचीन समय की बात है, एक महान और न्यायप्रिय राजा था, जिसका नाम धर्मपाल था। वह हमेशा सत्य और धर्म के मार्ग पर चलता था और अपने राज्य में निष्पक्ष शासन करता था। राजा धर्मपाल की ईमानदारी और सत्यनिष्ठा के चर्चे दूर-दूर तक होते थे।
राजा का मानना था कि एक शासक का सबसे महत्वपूर्ण धर्म है – सत्य का पालन करना, चाहे परिस्थितियां जैसी भी हों। उसकी इसी सत्यनिष्ठा के कारण राज्य में सभी लोग खुशहाल थे, और किसी ने भी कभी उसके खिलाफ आवाज नहीं उठाई।
राजा की परीक्षा
एक दिन, राजा धर्मपाल को एक महान तपस्वी से मिलने का अवसर मिला। तपस्वी ने राजा से कहा:
"हे राजा, तुम्हारी सत्यनिष्ठा और न्यायप्रियता के बारे में मैंने बहुत सुना है। लेकिन सत्य के मार्ग पर चलना केवल अच्छे समय में आसान होता है। क्या तुम सत्य के मार्ग पर चलने के लिए तब भी तैयार हो, जब तुम्हें इसका बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़े?"
राजा धर्मपाल ने तपस्वी से कहा:
"मैं सत्य के मार्ग पर हमेशा चलता हूँ, और मुझे विश्वास है कि सत्य हमेशा विजयी होता है।"
तपस्वी ने कहा:
"तुम्हारी सत्यनिष्ठा का परीक्षण करने के लिए मैं तुम्हारे सामने एक कठिन परिस्थिति रखता हूँ।"
तपस्वी की चुनौती
तपस्वी ने राजा से कहा:
"तुम्हारे राज्य में एक व्यापारी है, जो बहुत अमीर है। एक दिन उसने तुमसे एक बड़ा ऋण लिया, लेकिन वह उसे चुका नहीं पा रहा। अब वह अपनी संपत्ति और व्यापारी सामान के बदले कर्ज चुकाने की तैयारी कर रहा है। वह तुम्हारी मदद चाहता है। लेकिन तुम्हें पता है कि उस व्यापारी ने कर्ज चुकाने के नाम पर गलत तरीके से धोखा दिया है। तुम्हें यह निर्णय लेना होगा कि क्या तुम उस व्यापारी की मदद करोगे या उसे उसके कर्मों के लिए सजा दोगे?"
राजा धर्मपाल ने तपस्वी से कहा:
"यह कठिन स्थिति है, लेकिन मैं सत्य के रास्ते पर ही चलूंगा। अगर व्यापारी ने धोखा दिया है, तो उसे सजा मिलनी चाहिए।"
राजा का निर्णय
राजा ने व्यापारी से मुलाकात की और उसके सामने सच का सामना रखा। राजा ने कहा:
"तुमने कर्ज चुकाने के बदले धोखा दिया है, और तुम्हारी यह चालाकी राज्य के कानून का उल्लंघन है। इसलिए तुम्हें अपने कर्मों का फल भुगतना होगा।"
व्यापारी ने राजा से मिन्नतें की, लेकिन राजा ने अपनी सत्यनिष्ठा पर समझौता नहीं किया। राजा ने व्यापारी को सजा दी और उसका सारा सामान राज्य के भंडार में जमा किया।
राजा के इस कड़े फैसले से कुछ लोग नाराज हुए, लेकिन राजा ने कहा:
"सत्य और न्याय का पालन करना मेरा कर्तव्य है, और यह कभी भी व्यक्तिगत लाभ या लोकलुभावनता से बड़ा होता है।"
बेताल का प्रश्न
बेताल ने राजा विक्रम से पूछा:
"राजा धर्मपाल ने सत्य का पालन किया, लेकिन क्या उसे व्यापारी के प्रति कठोर निर्णय लेना चाहिए था? क्या उसका सत्यनिष्ठा पर अडिग रहना सही था?"
राजा विक्रम का उत्तर
राजा विक्रम ने उत्तर दिया:
"राजा धर्मपाल ने बिल्कुल सही किया। उसने सत्य और न्याय के मार्ग पर चलते हुए व्यापारी को उसकी गलतियों के लिए सजा दी। सत्य का पालन करना हमेशा सही होता है, भले ही इससे तत्काल नुकसान हो। एक शासक का पहला कर्तव्य है – न्याय और सत्य का पालन करना।"
कहानी की शिक्षा
- सत्य और न्याय हमेशा प्राथमिकता होनी चाहिए, चाहे स्थिति कैसी भी हो।
- सत्यनिष्ठा और ईमानदारी शासक के सबसे महत्वपूर्ण गुण होते हैं।
- सच्चे शासक को लोकलुभावनता या व्यक्तिगत लाभ से ऊपर उठकर निर्णय लेने चाहिए।
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