शनिवार, 21 सितंबर 2019

संत नामदेव जी की कथा – सच्ची भक्ति और भगवान के प्रति अनन्य प्रेम

 

🙏 संत नामदेव जी की कथा – सच्ची भक्ति और भगवान के प्रति अनन्य प्रेम 🛕

संत नामदेव जी भक्तिमार्ग के महान संतों में से एक थे। उनकी कथा हमें सिखाती है कि भगवान केवल प्रेम और भक्ति के भूखे होते हैं, न कि बाहरी आडंबर के।
उनका जीवन भक्ति, समर्पण और ईश्वर की कृपा के चमत्कारों से भरा हुआ था।


👶 संत नामदेव जी का जन्म और प्रारंभिक जीवन

📜 संत नामदेव जी का जन्म 1270 ई. में महाराष्ट्र के नरसी बामणी गाँव में हुआ था।
📌 उनके पिता दामाशेट और माता गोणाई देवी भगवान विट्ठल (श्रीकृष्ण) के अनन्य भक्त थे।
📌 बचपन से ही नामदेव जी भी भगवान विट्ठल के प्रति अत्यंत श्रद्धालु थे।

वे दिन-रात भगवान विट्ठल की सेवा और भजन-कीर्तन में लीन रहते थे।


🍛 भगवान विट्ठल को भोग लगाने की अनोखी भक्ति

📜 एक दिन, उनकी माता ने उन्हें भगवान विट्ठल के मंदिर में भोग (प्रसाद) चढ़ाने के लिए भेजा।
📌 नामदेव जी ने प्रसाद थाली रखी और विट्ठल से बोले – "भगवान, आकर इसे ग्रहण करो!"
📌 जब भगवान ने तुरंत प्रसाद नहीं लिया, तो नामदेव रोने लगे।
📌 उन्होंने कहा – "भगवान, अगर आप नहीं खाओगे, तो मैं भी कुछ नहीं खाऊँगा!"

📌 भगवान विट्ठल भक्त की सच्ची भावना से प्रसन्न हुए और साक्षात प्रकट होकर उन्होंने प्रसाद ग्रहण किया।
यह देखकर मंदिर के पुजारी और अन्य भक्त आश्चर्यचकित रह गए।
यह घटना सिद्ध करती है कि भगवान केवल सच्चे प्रेम और भक्ति को स्वीकार करते हैं।


🛕 जब भगवान विट्ठल ने नामदेव को मंदिर से बाहर भेजा

📜 एक बार, संतों की सभा में कुछ पंडितों ने कहा कि नामदेव की भक्ति सच्ची नहीं है, क्योंकि उन्होंने किसी गुरु से शिक्षा नहीं ली।
📌 उन्होंने नामदेव जी को मंदिर के बाहर बैठने को कहा और कहा कि यदि उनकी भक्ति सच्ची है, तो भगवान स्वयं उन्हें बुलाएँगे।
📌 नामदेव मंदिर के पीछे जाकर रोने लगे और भगवान विट्ठल से प्रार्थना करने लगे।

भगवान विट्ठल स्वयं मूर्ति से प्रकट हुए और मंदिर को घुमा दिया, ताकि नामदेव उनके सामने ही रहें।
आज भी ‘पंढरपुर मंदिर’ में भगवान विट्ठल की मूर्ति तिरछी खड़ी है, जो इस घटना का प्रमाण मानी जाती है।


👑 नामदेव जी और राजा का अहंकार

📜 एक बार, एक राजा ने संत नामदेव को अपने दरबार में बुलाया और उनकी भक्ति की परीक्षा ली।
📌 राजा ने कहा – "अगर तुम्हारे भगवान सच्चे हैं, तो वे इस पत्थर को भोजन करा सकते हैं!"
📌 नामदेव जी मुस्कुराए और बोले – "अगर भगवान पत्थर पर बैठ सकते हैं, तो वे उसे भोजन भी करा सकते हैं!"
📌 उन्होंने भगवान विट्ठल से प्रार्थना की, और चमत्कार हुआ – पत्थर में भगवान प्रकट हुए और भोजन ग्रहण किया।

राजा को अपने अहंकार का एहसास हुआ और उसने संत नामदेव जी से क्षमा माँगी।


📖 नामदेव जी की अमर वाणी और योगदान

📜 संत नामदेव जी ने अनेक अभंग (भक्ति गीत) और कविताएँ लिखीं, जो आज भी महाराष्ट्र और सिख धर्म में गुरबाणी के रूप में गाई जाती हैं।
📌 गुरु ग्रंथ साहिब में भी संत नामदेव जी के भजन संकलित हैं।
📌 उनकी वाणी भगवान के प्रति अटूट प्रेम और समर्पण का संदेश देती है।

उनका सबसे प्रसिद्ध भजन –
"विठ्ठल विठ्ठल जय हरि विठ्ठल..."
आज भी हर भक्त के हृदय में गूँजता है।


📌 कहानी से मिली सीख

भगवान केवल प्रेम और भक्ति के भूखे होते हैं, न कि बाहरी चढ़ावे के।
सच्चे भक्त की पुकार भगवान अवश्य सुनते हैं और उसे दर्शन देते हैं।
भक्ति में जाति, पंथ या समाज की ऊँच-नीच नहीं होती, केवल हृदय की पवित्रता मायने रखती है।
भगवान को पाने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है, लेकिन सच्चा प्रेम ही सबसे बड़ा साधन है।

🙏 "संत नामदेव जी की कथा हमें सिखाती है कि सच्चे प्रेम और भक्ति से भगवान को साक्षात पाया जा सकता है!" 🙏

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