🙏 श्रवण कुमार की प्रेरणादायक कहानी – माता-पिता की सेवा का अद्भुत उदाहरण 👵👴
प्राचीन भारत में श्रवण कुमार एक ऐसा पुत्र था, जिसने माता-पिता की सेवा के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। उनकी कहानी हमें कर्तव्य, निःस्वार्थ प्रेम और भक्ति की सीख देती है।
🧒 माता-पिता की सेवा में समर्पित श्रवण कुमार
श्रवण कुमार के माता-पिता अंधे थे और बहुत वृद्ध हो चुके थे। वे बहुत ही गरीब परिवार से थे, लेकिन उनका बेटा श्रवण श्रद्धालु, आज्ञाकारी और सेवा भाव से भरा हुआ था।
📌 वह अपने माता-पिता की हर जरूरत का ध्यान रखता था।
📌 उनके लिए भोजन, वस्त्र और आश्रय का प्रबंध करता था।
📌 उसने संकल्प लिया कि जब तक वह जीवित है, तब तक अपने माता-पिता की सेवा करेगा।
🌿 तीर्थ यात्रा का संकल्प
एक दिन, श्रवण कुमार के माता-पिता ने उससे कहा –
"बेटा, हमारी अंतिम इच्छा है कि हम चारों धाम की तीर्थयात्रा करें, लेकिन हम अंधे हैं, कैसे जाएँगे?"
श्रवण कुमार ने माता-पिता की इस इच्छा को पूरा करने के लिए एक कांवड़ (बाँस का बना कंधे पर उठाने वाला पालकी जैसी संरचना) बनाई।
📌 उसमें दो टोकरियाँ बाँधीं, जिनमें अपने माता-पिता को बैठाया।
📌 खुद कंधे पर यह भार उठाया और उन्हें तीर्थयात्रा पर लेकर निकल पड़ा।
📌 वह कई दिनों तक जंगल, पहाड़ और नदियों को पार करता हुआ माता-पिता को भगवान के दर्शन कराने ले गया।
🏹 राजा दशरथ की गलती और श्रवण कुमार की मृत्यु
एक दिन, जब वे एक घने जंगल से गुजर रहे थे, माता-पिता को प्यास लगी।
श्रवण कुमार पानी लेने के लिए नदी के किनारे पहुँचे और घड़े से पानी भरने लगे।
उसी समय, अयोध्या के राजा दशरथ भी वहीं शिकार करने आए थे।
वे ध्वनि सुनकर भ्रमित हो गए और बिना देखे तीर चला दिया।
तीर सीधा श्रवण कुमार के सीने में जा लगा।
जब राजा दौड़कर वहाँ पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि यह कोई जानवर नहीं, बल्कि एक पवित्र आत्मा थी जो अपने माता-पिता की सेवा कर रही थी।
😢 अंतिम शब्द और माता-पिता का शाप
शरीर में तीर लगा होने के बावजूद, श्रवण कुमार ने राजा दशरथ से एक अंतिम अनुरोध किया –
"हे राजन, कृपया मेरे माता-पिता को पानी पिला दीजिए। वे अंधे हैं और मेरा इंतजार कर रहे हैं।"
राजा दशरथ जब पानी लेकर वृद्ध माता-पिता के पास पहुँचे, तो उन्होंने कहा –
"बेटा, तू क्यों नहीं बोल रहा? तुझे क्या हुआ?"
राजा दशरथ ने उन्हें पूरी घटना सुनाई, जिससे वे अत्यंत दुखी हुए।
उन्होंने राजा दशरथ को श्राप दिया –
"जिस तरह हम अपने बेटे के बिना तड़प रहे हैं, उसी तरह एक दिन तुम भी अपने पुत्र वियोग में प्राण त्यागोगे!"
यह श्राप रामायण में राजा दशरथ की मृत्यु का कारण बना, जब श्रीराम को वनवास जाना पड़ा और राजा दशरथ पुत्र वियोग में चल बसे।
📌 कहानी से मिली सीख
✔ माता-पिता की सेवा सबसे बड़ा धर्म है।
✔ कर्तव्यपरायणता और निःस्वार्थ प्रेम से जीवन सार्थक बनता है।
✔ कोई भी कार्य करने से पहले उसके परिणाम के बारे में सोचें।
✔ ग़लती होने पर सच्चे हृदय से पश्चाताप करना चाहिए।
🙏 "श्रवण कुमार की कहानी हमें सिखाती है कि माता-पिता की सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं!" 🙏
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