तैत्तिरीय संहिता – कृष्ण यजुर्वेद की प्रमुख शाखा
तैत्तिरीय संहिता (Taittirīya Saṁhitā) कृष्ण यजुर्वेद (Kṛṣṇa Yajurveda) की सबसे महत्वपूर्ण और प्रचलित शाखा है। यह यज्ञों की प्रक्रिया, अनुष्ठानिक कर्मकांड, देवताओं की स्तुति, तथा ब्रह्मज्ञान से संबंधित है। इस ग्रंथ में यज्ञों के मंत्रों और उनकी व्याख्या को मिश्रित रूप में प्रस्तुत किया गया है।
🔹 तैत्तिरीय संहिता की विशेषताएँ
वर्ग | विवरण |
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संहिता का नाम | तैत्तिरीय संहिता (Taittirīya Saṁhitā) |
वेद | कृष्ण यजुर्वेद |
प्रमुख ऋषि | वैदिक आचार्य तित्तिरि और उनके शिष्य |
मुख्य विषय | यज्ञ, अग्निहोत्र, अश्वमेध, सोमयज्ञ, देवताओं की स्तुति |
कर्मकांड | पंचमहायज्ञ, अग्निहोत्र, सोमयज्ञ, दर्भसर्प यज्ञ |
मुख्य देवता | अग्नि, इंद्र, वरुण, रुद्र, विष्णु, मरुतगण |
संरचना | 7 कांड (खंड), 44 प्रपाठक (अनुभाग), 635 अनुवाक (उप-अध्याय) |
👉 कृष्ण यजुर्वेद की अन्य शाखाओं में यह सबसे अधिक प्रचलित है।
🔹 तैत्तिरीय संहिता की संरचना
तैत्तिरीय संहिता को 7 कांडों (खंडों) में विभाजित किया गया है। प्रत्येक कांड विभिन्न यज्ञों, मंत्रों और अनुष्ठानों से संबंधित है।
कांड संख्या | विषय-वस्तु |
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प्रथम कांड | अग्निहोत्र, सोमयज्ञ और पंचमहायज्ञ |
द्वितीय कांड | राजसूय यज्ञ और अश्वमेध यज्ञ की विधियाँ |
तृतीय कांड | दर्भसर्प यज्ञ, अग्नि की स्थापना और स्तुतियाँ |
चतुर्थ कांड | रुद्र स्तुति (श्रीरुद्र), वाजपेय यज्ञ |
पंचम कांड | संध्यावंदन, अग्निहोत्र, देवताओं का महत्त्व |
षष्ठम कांड | आध्यात्मिक चिंतन, ब्रह्मज्ञान और आत्मा का स्वरूप |
सप्तम कांड | ऋषियों के संवाद, ध्यान और ब्रह्मज्ञान |
🔹 तैत्तिरीय संहिता के प्रमुख विषय
1️⃣ यज्ञों की विधियाँ और मंत्र
तैत्तिरीय संहिता में अनेक यज्ञों की विस्तृत विधियाँ दी गई हैं:
- अग्निहोत्र यज्ञ – प्रतिदिन किया जाने वाला हवन
- सौत्रामणि यज्ञ – शुद्धिकरण यज्ञ
- वाजपेय यज्ञ – राज्याभिषेक यज्ञ
- अश्वमेध यज्ञ – सम्राट द्वारा किया जाने वाला महान यज्ञ
- राजसूय यज्ञ – राजा के राज्याभिषेक के लिए
- पंचमहायज्ञ – गृहस्थ जीवन में किए जाने वाले पाँच दैनिक यज्ञ
🔹 उदाहरण (तैत्तिरीय संहिता 1.1.1):
"अग्निं दूतं पुरोहितं यज्ञस्य देवं ऋत्विजम्।"
📖 अर्थ: अग्नि देव यज्ञ के माध्यम से देवताओं तक हमारी प्रार्थनाएँ पहुँचाने वाले हैं।
2️⃣ श्रीरुद्र (रुद्राष्टाध्यायी) – भगवान शिव की स्तुति
- तैत्तिरीय संहिता में प्रसिद्ध श्रीरुद्र (रुद्राष्टाध्यायी) का उल्लेख है, जिसमें भगवान रुद्र (शिव) की स्तुति की गई है।
- इसमें शिव के संहारक और कल्याणकारी दोनों रूपों की चर्चा है।
🔹 उदाहरण (तैत्तिरीय संहिता 4.5.1 - श्रीरुद्र):
"नमः शम्भवे च मयोभवे च नमः शिवाय च शिवतराय च।"
📖 अर्थ: कल्याणकारी शम्भु, आनंददायक मयोभव और शिव को प्रणाम।
🔹 महत्व:
- यह पाठ शिव भक्ति का मुख्य स्तोत्र माना जाता है।
- श्रीरुद्र पाठ रुद्राभिषेक और शिवोपासना में अनिवार्य है।
3️⃣ पंचमहायज्ञ – गृहस्थ धर्म के पाँच अनिवार्य यज्ञ
गृहस्थ व्यक्ति के लिए पाँच प्रकार के दैनिक यज्ञ करने का विधान बताया गया है:
- ब्रह्मयज्ञ – वेदों के अध्ययन और ज्ञान की साधना
- देवयज्ञ – देवताओं के लिए हवन और पूजा
- पितृयज्ञ – पूर्वजों के लिए तर्पण और श्राद्ध
- भूतयज्ञ – प्रकृति और प्राणियों की सेवा
- अतिथियज्ञ – अतिथि सत्कार और दान
🔹 उदाहरण (तैत्तिरीय संहिता 1.3.2):
"ऋषिभ्यः स्वधा, देवभ्यः स्वाहा।"
📖 अर्थ: ऋषियों के लिए श्रद्धा, देवताओं के लिए आहुति।
4️⃣ धर्म, नैतिकता और समाज व्यवस्था
- तैत्तिरीय संहिता में राजनीति, समाज व्यवस्था, धर्म और नैतिकता पर भी विचार किया गया है।
- इसमें राजा के गुण, न्याय, सत्य और कर्म की महिमा पर विशेष जोर दिया गया है।
🔹 प्रसिद्ध मंत्र (तैत्तिरीय संहिता 5.1.2):
"सत्यं वद धर्मं चर।"
📖 अर्थ: सत्य बोलो और धर्म का पालन करो।
🔹 मुख्य विषय:
- सत्य और धर्म का पालन मनुष्य के जीवन का मुख्य कर्तव्य है।
- समाज में नैतिकता और न्याय की स्थापना पर बल।
5️⃣ पर्यावरण संरक्षण और पृथ्वी की महिमा
- तैत्तिरीय संहिता में पृथ्वी और पर्यावरण के संरक्षण की शिक्षा दी गई है।
🔹 प्रसिद्ध मंत्र (तैत्तिरीय संहिता 6.3.3):
"माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः।"
📖 अर्थ: पृथ्वी हमारी माता है और हम इसके पुत्र हैं।
🔹 महत्व:
- यह मंत्र पृथ्वी के प्रति हमारी जिम्मेदारी और पर्यावरण संतुलन पर बल देता है।
🔹 तैत्तिरीय संहिता का महत्व
- यज्ञों का मार्गदर्शक – यह ग्रंथ धार्मिक अनुष्ठानों और यज्ञों की प्रक्रिया को व्यवस्थित करता है।
- शिव की स्तुति – श्रीरुद्र पाठ में भगवान रुद्र (शिव) की महिमा का वर्णन मिलता है।
- धर्म और नीति – समाज में नैतिकता, कर्तव्य और क़ानून के नियमों को स्पष्ट करता है।
- राजनीतिक और सामाजिक शिक्षा – राजा के गुण, न्याय व्यवस्था, और सामाजिक संतुलन पर विचार।
- पर्यावरण चेतना – प्रकृति के प्रति सम्मान और पृथ्वी संरक्षण की प्रेरणा।
🔹 निष्कर्ष
- तैत्तिरीय संहिता कृष्ण यजुर्वेद की सबसे प्रसिद्ध शाखा है।
- इसमें यज्ञ, धर्म, समाज, शिव भक्ति, नीति और पर्यावरण संरक्षण के विषय सम्मिलित हैं।
- श्रीरुद्र (रुद्राष्टाध्यायी), पंचमहायज्ञ, सत्य और धर्म के नियम इसमें विस्तृत रूप से बताए गए हैं।
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