शनिवार, 20 मई 2017

भक्ति में पूर्ण समर्पण कैसे करें?

 

भक्ति में पूर्ण समर्पण कैसे करें?

कैसे अहंकार और सांसारिक मोह को छोड़कर पूरी तरह ईश्वर को समर्पित हों?

🌿 "पूर्ण समर्पण" (Atma Nivedan) का अर्थ है – अपने मन, बुद्धि, शरीर और आत्मा को संपूर्ण रूप से ईश्वर को अर्पित कर देना।
💡 जब हम अपने जीवन को ईश्वर की इच्छा के अनुसार जीते हैं, तब हम अहंकार और सांसारिक मोह से मुक्त होकर परम आनंद प्राप्त कर सकते हैं।

🙏 भगवद गीता (अध्याय 18.66):
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥"
👉 "सभी धर्मों को त्यागकर मेरी शरण में आ जाओ, मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा – चिंता मत करो।"


👉 1. अहंकार को छोड़ने के लिए 5 सरल उपाय

🔹 अहंकार (Ego) हमें ईश्वर से दूर करता है और पूर्ण समर्पण में सबसे बड़ी बाधा बनता है।
🔹 जब तक अहंकार रहेगा, तब तक हम यह मानेंगे कि "मैं ही सबकुछ कर रहा हूँ।"
🔹 लेकिन सच्ची भक्ति तब शुरू होती है जब हम "मैं" को त्याग देते हैं और कहते हैं – "सब कुछ भगवान की कृपा से हो रहा है।"

✔ 1️⃣ ईश्वर को कर्ता मानें (God is the Doer, Not Me)

❌ "मैंने यह सफलता पाई, यह मेरी मेहनत का फल है।"
✅ "यह सब भगवान की कृपा से हुआ, मैं केवल उनका माध्यम हूँ।"

📌 प्रैक्टिस:

  • हर दिन सुबह और रात सोने से पहले कहें – "हे प्रभु, मैं कुछ भी नहीं, आप ही मेरे जीवन के मार्गदर्शक हैं।"
  • अपने हर कार्य को भगवान की सेवा समझें।

✔ 2️⃣ विनम्रता और सेवा का अभ्यास करें (Practice Humility & Seva)

🔹 अहंकार त्यागने का सबसे अच्छा तरीका सेवा (Seva) है।
🔹 जब हम निस्वार्थ सेवा करते हैं, तो हमारा अहंकार टूटता है।

📌 प्रैक्टिस:

  • रोज़ किसी की मदद करें और उसे भगवान की सेवा मानें।
  • मंदिर में सफाई करें, गरीबों को भोजन कराएँ, दूसरों के दुख को समझें।
  • यह सोचे बिना सेवा करें कि बदले में क्या मिलेगा।

✔ 3️⃣ सांसारिक पहचान को छोड़ें (Detach from False Identity)

🔹 हम सोचते हैं कि "मैं यह शरीर हूँ, यह नाम, पद, संपत्ति मेरी है।"
🔹 लेकिन सच्चाई यह है कि हम आत्मा हैं और यह सब कुछ क्षणिक है।

📌 प्रैक्टिस:

  • दिन में 5 मिनट यह विचार करें – "मैं आत्मा हूँ – शुद्ध, पवित्र, अमर। यह शरीर और संसार अस्थायी है।"
  • जब भी अहंकार आए, सोचें – "यह सफलता, यह धन, यह पद – सब ईश्वर का है, मैं केवल एक यात्री हूँ।"

✔ 4️⃣ समर्पण का अभ्यास करें (Surrender Every Moment)

🔹 समर्पण का अर्थ है – हर परिस्थिति को ईश्वर की इच्छा मानकर स्वीकार करना।
🔹 सुख में अहंकार न आए और दुख में निराशा न हो।

📌 प्रैक्टिस:

  • जब भी कोई कठिनाई आए, कहें – "हे प्रभु, यह आपकी लीला है, मुझे इसे सहने की शक्ति दें।"
  • हर सफलता के लिए ईश्वर को धन्यवाद दें – "यह आपकी कृपा से संभव हुआ है।"

✔ 5️⃣ "मैं" और "मेरा" का त्याग करें (Let Go of "I" and "Mine")

🔹 सबसे बड़ा अहंकार "मैं" और "मेरा" होता है।
🔹 पूर्ण समर्पण का अर्थ है – "मैं कुछ भी नहीं, सब कुछ भगवान का है।"

📌 प्रैक्टिस:

  • अपनी कोई प्रिय वस्तु (धन, समय, सेवा) भगवान को अर्पित करें।
  • "हे प्रभु, मेरा कुछ भी नहीं, सब कुछ आपका है।" इस संकल्प को मन में बैठाएँ।

👉 2. सांसारिक मोह को छोड़ने के लिए 5 उपाय

🔹 सांसारिक मोह (Attachments) हमें भक्ति से दूर करता है।
🔹 हमें धन, परिवार, प्रतिष्ठा, रिश्तों से इतना लगाव हो जाता है कि हम ईश्वर को भूल जाते हैं।
🔹 भक्ति में पूर्ण समर्पण के लिए हमें इन मोहों को त्यागना सीखना होगा।


✔ 1️⃣ ईश्वर को अपनी प्राथमिकता बनाएँ (Make God Your First Priority)

❌ "मेरे पास भक्ति का समय नहीं, मैं व्यस्त हूँ।"
✅ "सब कुछ ईश्वर की कृपा से ही संभव है, भक्ति के बिना कुछ भी व्यर्थ है।"

📌 प्रैक्टिस:

  • रोज़ कम से कम 10-15 मिनट ईश्वर के लिए समय निकालें।
  • भजन, ध्यान, प्रार्थना या सत्संग करें।
  • दिनभर के कार्यों के बीच में भगवान का स्मरण करें।

✔ 2️⃣ मोह और प्रेम में अंतर समझें (Understand the Difference Between Attachment & Love)

🔹 मोह (Attachment) – स्वार्थ से जुड़ा होता है।
🔹 प्रेम (Love) – निस्वार्थ होता है।

📌 प्रैक्टिस:

  • परिवार और रिश्तों में प्रेम करें, लेकिन उन्हें भगवान से बड़ा न समझें।
  • रिश्तों में स्वार्थ और अधिकार की भावना को छोड़ें।

✔ 3️⃣ संसार की अस्थिरता को समझें (Realize the Impermanence of the World)

🔹 जो भी चीज़ आज हमारे पास है – धन, शरीर, लोग – सब नश्वर हैं।
🔹 केवल भगवान और आत्मा शाश्वत हैं।

📌 प्रैक्टिस:

  • हर दिन यह विचार करें – "सब कुछ अस्थायी है, केवल ईश्वर स्थायी हैं।"
  • जब भी किसी चीज़ का मोह बढ़े, सोचें – "क्या यह मेरे साथ हमेशा रहेगा?"

✔ 4️⃣ हर परिस्थिति को भगवान की इच्छा मानें (Accept Everything as God's Will)

🔹 सुख और दुख – दोनों ही भगवान की इच्छा से आते हैं।
🔹 जब हम यह स्वीकार कर लेते हैं, तो हमारा मोह कम हो जाता है।

📌 प्रैक्टिस:

  • जब कोई चीज़ हाथ से निकल जाए, कहें – "हे प्रभु, यह आपकी मर्जी थी, मैं इसे स्वीकार करता हूँ।"
  • जो कुछ मिला है, उसके लिए कृतज्ञ रहें – "आपकी कृपा से ही यह संभव हुआ है।"

✔ 5️⃣ अपना सब कुछ भगवान को समर्पित करें (Offer Everything to God)

🔹 धन, समय, सेवा, प्रेम – जो भी हमारे पास है, उसे भगवान के लिए समर्पित करें।
🔹 जब हम ऐसा करते हैं, तो संसार की वस्तुओं से हमारा मोह कम हो जाता है।

📌 प्रैक्टिस:

  • "हे प्रभु, यह जीवन आपका है, इसे जैसा चाहें, वैसा उपयोग करें।"
  • किसी भी कार्य को ईश्वर के लिए अर्पण करें – "यह आपकी सेवा में है।"

👉 निष्कर्ष: पूर्ण समर्पण का रहस्य

अहंकार त्यागें – "मैं" और "मेरा" छोड़ें।
हर परिस्थिति को ईश्वर की इच्छा मानकर स्वीकार करें।
रिश्तों में निस्वार्थ प्रेम रखें, लेकिन भगवान को पहली प्राथमिकता दें।
संसार की नश्वरता को समझें और आत्मा की शाश्वतता को अपनाएँ।
हर कर्म को भगवान की सेवा मानकर करें।

🙏 "मैं कुछ नहीं, सब कुछ भगवान हैं। मेरा जीवन, मेरा कर्म, मेरा प्रेम – सब कुछ उन्हीं के लिए है।"

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