शनिवार, 25 मार्च 2017

ध्यान के दौरान विचारों को नियंत्रित करने की विधि

 

ध्यान के दौरान विचारों को नियंत्रित करने की विधि

ध्यान का सबसे बड़ा उद्देश्य मन को शांत और विचारों को नियंत्रित करना है।
लेकिन जब भी हम ध्यान करने बैठते हैं, तो मन में विचारों की भीड़ आ जाती है।
ये विचार कभी अतीत की घटनाओं से जुड़े होते हैं, तो कभी भविष्य की चिंताओं से।
इसलिए, मन को स्थिर और शांत करना ही ध्यान की सबसे बड़ी चुनौती है।

👉 विचारों को नियंत्रित क्यों करना ज़रूरी है?

🔹 जब मन में बहुत अधिक विचार होते हैं, तो ध्यान में गहराई तक नहीं जाया जा सकता।
🔹 अत्यधिक विचार तनाव, चिंता और बेचैनी को बढ़ाते हैं।
🔹 विचारों की अधिकता से शारीरिक और मानसिक ऊर्जा नष्ट होती है।
🔹 जब विचार शांत होते हैं, तो आंतरिक शांति, स्पष्टता और आध्यात्मिक अनुभूति होती है।


👉 ध्यान के दौरान विचारों को शांत और नियंत्रित करने के 7 प्रभावी तरीके

1. विचारों को रोकने की कोशिश न करें – उन्हें स्वीकार करें

❌ गलत तरीका – "मुझे सोचना बंद करना चाहिए! कोई विचार नहीं आना चाहिए!"
✅ सही तरीका – "जो भी विचार आ रहे हैं, मैं उन्हें देख रहा हूँ और जाने दे रहा हूँ।"

🔹 जब आप विचारों से लड़ते हैं, तो वे और अधिक बढ़ते हैं।
🔹 इसलिए, विचारों को रोकने की कोशिश न करें, बल्कि उन्हें स्वीकार करें और धीरे-धीरे शांत करें।
🔹 जैसे बादल धीरे-धीरे आसमान में बह जाते हैं, वैसे ही अपने विचारों को आने और जाने दें।


2. सांसों पर ध्यान केंद्रित करें (Breath Awareness Technique)

🔹 अपनी श्वास (सांस) पर ध्यान दें – धीरे-धीरे गहरी सांस लें और छोड़ें।
🔹 यह विचारों को कम करने में मदद करता है और ध्यान को एक बिंदु पर केंद्रित करता है।
🔹 जब भी मन भटकने लगे, तुरंत सांसों पर ध्यान लाएँ।

👉 अभ्यास:
"मैं गहरी सांस ले रहा हूँ... मैं सांस छोड़ रहा हूँ... मैं शांत हूँ..."
(इसका 5-10 मिनट तक अभ्यास करें)


3. पॉज़िटिव संकल्प (Affirmations) का उपयोग करें

🔹 मन को नियंत्रित करने के लिए सकारात्मक विचारों (Affirmations) का प्रयोग करें।
🔹 जब विचार अधिक आने लगें, तो शांति से कुछ सकारात्मक वाक्य मन में दोहराएँ:

"मैं आत्मा हूँ – शांत, शुद्ध और दिव्य।"
"मेरा मन शांत है, विचारों का प्रवाह थम रहा है।"
"परमात्मा की ऊर्जा से मैं शक्ति और शांति प्राप्त कर रहा हूँ।"

🔹 जब भी ध्यान के दौरान विचार भटकने लगें, इन संकल्पों को दोहराएँ।


4. "देखने वाला" बनें (Witnessing the Thoughts)

🔹 विचारों से जुड़ने की बजाय, उनका साक्षी (Observer) बनें।
🔹 जैसे कोई नदी के किनारे बैठकर जल प्रवाह को देखता है, वैसे ही अपने विचारों को आते-जाते देखें।
🔹 यह विधि विचारों से दूरी बनाने में मदद करती है और उन्हें धीरे-धीरे कम करती है।


5. मंत्र या एक शब्द पर ध्यान केंद्रित करें (Mantra Meditation)

🔹 ध्यान के दौरान "ओम" या "शांति" जैसे किसी मंत्र का जप करें।
🔹 इससे मन की ऊर्जा केंद्रित होती है और व्यर्थ विचार रुकने लगते हैं।
🔹 किसी पसंदीदा मंत्र का धीरे-धीरे मन में उच्चारण करें, जैसे:

"ओम शांति..."
"परमात्मा का प्रेम मेरे साथ है..."

👉 इससे मन जल्दी शांत होता है और विचारों का नियंत्रण आसान हो जाता है।


6. मन को व्यस्त करें (Creative Visualization Technique)

🔹 अपने मन में एक शांति से भरा दृश्य (Visualization) बनाएँ।
🔹 उदाहरण के लिए –
एक शांत झील के किनारे बैठे हुए खुद को अनुभव करें।
एक स्वर्णिम प्रकाश में डूबी आत्मा के रूप में स्वयं को देखें।
परमात्मा से प्रकाश और शक्ति प्राप्त करते हुए महसूस करें।

🔹 यह विधि मन को सकारात्मक विचारों में व्यस्त करके नकारात्मक और व्यर्थ विचारों को रोकने में मदद करती है।


7. धीरे-धीरे विचारों की संख्या कम करें (Slow Thought Process)

🔹 साधारण अवस्था में, हमारा मन एक मिनट में 50-60 विचार उत्पन्न करता है।
🔹 ध्यान का अभ्यास करके इस संख्या को धीरे-धीरे 10-15 विचार प्रति मिनट तक लाना संभव है।
🔹 जब भी कोई विचार आए, उसे धीरे-धीरे कम करने का प्रयास करें।

👉 अभ्यास:
"मैं हर विचार को धीमा कर रहा हूँ... धीरे-धीरे मेरा मन पूरी तरह शांत हो रहा है..."


👉 विचारों को नियंत्रित करने की संक्षिप्त ध्यान विधि (5 मिनट का अभ्यास)

1️⃣ बैठने की सही मुद्रा अपनाएँ – रीढ़ सीधी रखें, आँखें हल्की बंद करें।
2️⃣ गहरी सांस लें और छोड़ें – सांसों की गति को महसूस करें।
3️⃣ "मैं आत्मा हूँ" का चिंतन करें – शरीर से परे आत्मा के रूप में अनुभव करें।
4️⃣ परमात्मा से जुड़ें – उनकी दिव्य ऊर्जा को आत्मसात करें।
5️⃣ शांति की अनुभूति करें – धीरे-धीरे विचारों को कम करें और ध्यान में लीन हो जाएँ।

रोज़ाना इस अभ्यास को 10-15 मिनट तक करें, इससे विचार स्वतः नियंत्रित होने लगेंगे।


👉 निष्कर्ष: ध्यान में विचारों को नियंत्रित करने का मूल मंत्र

विचारों को जबरदस्ती रोकें नहीं, उन्हें धीरे-धीरे शांत करें।
सांसों, मंत्रों और सकारात्मक संकल्पों का प्रयोग करें।
अपने विचारों का साक्षी बनें और उन्हें एक बिंदु पर केंद्रित करें।
राज योग ध्यान द्वारा परमात्मा से जुड़कर आत्मा को दिव्य ऊर्जा प्रदान करें।
नियमित अभ्यास करें, धैर्य बनाए रखें – धीरे-धीरे मन पूरी तरह शांत हो जाएगा।

🔹 "मैं आत्मा हूँ – शांत, पवित्र और दिव्य। परमात्मा की ऊर्जा मेरे भीतर प्रवेश कर रही है और मेरे विचार शांत हो रहे हैं।" 🙏✨

शनिवार, 18 मार्च 2017

ध्यान की गहरी अवस्था (समाधि): उच्च चेतना की ओर यात्रा

 

ध्यान की गहरी अवस्था (समाधि): उच्च चेतना की ओर यात्रा

ध्यान की सर्वोच्च अवस्था को समाधि कहते हैं। यह वह स्थिति होती है, जब आत्मा पूरी तरह से परमात्मा से जुड़कर उसके दिव्य प्रकाश, प्रेम और शक्ति में लीन हो जाती है।

राज योग ध्यान में समाधि का अर्थ है – पूर्ण शांति, आनंद और आत्म-साक्षात्कार की अवस्था।
यह एक अत्यधिक सूक्ष्म और दिव्य अनुभव है, जिसमें साधक (योगी) शरीर और संसार की सीमाओं से परे चला जाता है।


समाधि की अवस्थाएँ (चरण-दर-चरण प्रक्रिया)

समाधि तक पहुँचने के लिए साधक को ध्यान की विभिन्न अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। इन्हें चार मुख्य चरणों में समझा जा सकता है:

1. प्रारंभिक ध्यान अवस्था (ध्यान का अभ्यास शुरू करना)

🔹 शरीर को स्थिर और आरामदायक स्थिति में रखें।
🔹 स्वयं को आत्मा (एक ज्योति बिंदु) के रूप में अनुभव करें।
🔹 सांसों को धीमा और नियंत्रित करें।
🔹 धीरे-धीरे विचारों को नियंत्रित करने का प्रयास करें।
🔹 मन में शांति और शुद्धता का भाव लाएँ।

लक्ष्य: मन को स्थिर करना और ध्यान की आदत विकसित करना।


2. एकाग्रता की अवस्था (ध्यान में स्थिरता लाना)

🔹 ध्यान को परमात्मा के दिव्य प्रकाश की ओर केंद्रित करें।
🔹 यह महसूस करें कि परमात्मा एक ज्योतिर्मय बिंदु हैं, जो प्रेम और शक्ति का स्रोत हैं।
🔹 परमात्मा से मिलने वाली ऊर्जा, प्रेम, और शांति को अपने अंदर अनुभव करें।
🔹 इस स्थिति में विचार बहुत कम होते जाते हैं और मन एक बिंदु पर केंद्रित हो जाता है।

लक्ष्य: मन को परमात्मा से जोड़कर शुद्ध ऊर्जा को आत्मसात करना।


3. दिव्य अनुभूति (गहरी ध्यान अवस्था)

🔹 ध्यान की यह अवस्था बहुत शक्तिशाली होती है।
🔹 मन अब पूरी तरह से शांत हो जाता है, और सकारात्मक ऊर्जा, आनंद और प्रेम की लहरें महसूस होती हैं।
🔹 साधक अपने अस्तित्व से परे जाकर केवल ऊर्जा और प्रकाश में विलीन होने लगता है।
🔹 यह अनुभव होता है कि आत्मा और परमात्मा एक अद्भुत शांति और प्रेम के बंधन में बंध गए हैं।

लक्ष्य: पूर्ण ध्यान में लीन होकर दिव्य अनुभूति करना।


4. समाधि (पूर्ण आत्म-साक्षात्कार और परम शांति की अवस्था)

🔹 साधक अब शरीर और भौतिक संसार से परे चला जाता है।
🔹 केवल शुद्ध चेतना, शांति और दिव्यता का अनुभव होता है।
🔹 यह अवस्था "सुप्रीम ब्लिस" (परम आनंद) और "शुद्धतम शांति" की स्थिति होती है।
🔹 इसमें न विचार होते हैं, न समय का भान, न ही किसी प्रकार की मानसिक हलचल।

लक्ष्य: आत्मा को पूर्ण रूप से परमात्मा के साथ एकाकार करना और शुद्ध ब्रह्मांडीय ऊर्जा में लीन हो जाना।


कैसे समाधि तक पहुँचा जाए? (राज योग ध्यान की विधि)

1. प्रतिदिन ध्यान का अभ्यास करें

🔹 समाधि अचानक नहीं होती, यह निरंतर अभ्यास और धैर्य से प्राप्त होती है।
🔹 प्रतिदिन कम से कम 15-30 मिनट ध्यान करें।
🔹 ध्यान के समय को धीरे-धीरे बढ़ाएँ।

2. शरीर और मन को तैयार करें

🔹 संतुलित और सात्त्विक भोजन करें।
🔹 अत्यधिक व्यस्तता और तनाव से बचें।
🔹 अपनी दिनचर्या में संयम और अनुशासन बनाए रखें।

3. विचारों को नियंत्रित करें (प्रत्याहार और धारणा अभ्यास करें)

🔹 व्यर्थ और नकारात्मक विचारों को त्यागें।
🔹 अपने मन को एक बिंदु पर केंद्रित करने का अभ्यास करें।
🔹 विचारों को जितना हो सके कम करें और उन्हें शुद्ध बनाएँ।

4. दिव्य ऊर्जा को आत्मसात करें

🔹 परमात्मा के दिव्य प्रकाश से ऊर्जा ग्रहण करें।
🔹 यह अनुभव करें कि आपके भीतर से सभी नकारात्मकता समाप्त हो रही है।
🔹 आत्मा पूरी तरह से शुद्ध, शांत और प्रकाशमयी हो रही है।

5. अहंकार और इच्छाओं का त्याग करें

🔹 समाधि की अवस्था में जाने के लिए अहंकार और भौतिक इच्छाओं को छोड़ना आवश्यक है।
🔹 आत्मा को स्वतंत्र और हल्का अनुभव करें।


समाधि के लाभ

पूर्ण मानसिक शांति – मन में कोई अशांति नहीं रहती।
गहरी आध्यात्मिक ऊर्जा – शरीर और आत्मा में दिव्य शक्ति का संचार होता है।
कर्मों की शुद्धि – पिछले नकारात्मक कर्मों का प्रभाव धीरे-धीरे समाप्त होने लगता है।
अहंकार और नकारात्मकता समाप्त होती है – व्यक्ति बेहद विनम्र और प्रेममयी बन जाता है।
परम आनंद और दिव्यता का अनुभव – साधक निर्मल आनंद (Supreme Bliss) में स्थित हो जाता है।


निष्कर्ष

समाधि कोई चमत्कार नहीं, बल्कि नियमित ध्यान, आत्म-साक्षात्कार और परमात्मा से जुड़ने का परिणाम है।
जब आत्मा पूरी तरह से परमात्मा में लीन हो जाती है, तब समाधि की उच्च अवस्था प्राप्त होती है।

🔹 "मैं आत्मा हूँ – शुद्ध, शांत, और दिव्य। परमात्मा मेरे साथ हैं, और उनकी दिव्य ऊर्जा से मैं शक्ति और शांति प्राप्त कर रहा हूँ।" 🙏✨

शनिवार, 11 मार्च 2017

आत्मा और परमात्मा का संबंध: एक गहरी आध्यात्मिक यात्रा

 

आत्मा और परमात्मा का संबंध: एक गहरी आध्यात्मिक यात्रा

यह प्रश्न मानव अस्तित्व और आध्यात्मिकता की सबसे गहरी खोजों में से एक है – "मैं कौन हूँ?" और "परमात्मा कौन हैं?"
राज योग में आत्मा और परमात्मा के बीच के शाश्वत संबंध को समझना ध्यान (मेडिटेशन) की सफलता की कुंजी है।


आत्मा क्या है?

आत्मा एक अजर-अमर, शाश्वत और दिव्य ऊर्जा है, जो इस शरीर को संचालित करती है।
यह शरीर नहीं है, बल्कि शरीर का वास्तविक चालक (ड्राइवर) है।
राज योग में, आत्मा को एक ज्योति बिंदु (एक सूक्ष्म प्रकाश की चमक) के रूप में अनुभव किया जाता है।

आत्मा के मुख्य गुण:

🔹 शुद्धता – आत्मा स्वभाव से पवित्र होती है।
🔹 शांति – शांति आत्मा का मूल स्वभाव है।
🔹 प्रेम – निःस्वार्थ प्रेम आत्मा की प्राकृतिक अवस्था है।
🔹 सुख – आत्मा सच्चे और शाश्वत सुख का स्रोत है।
🔹 ज्ञान – आत्मा ज्ञानमयी और बुद्धिमान होती है।
🔹 शक्ति – आत्मा में असीम शक्ति होती है।

👉 आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है। यह केवल शरीर बदलती है।
(भगवद गीता 2.20: "न जायते म्रियते वा कदाचिन, नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।" – आत्मा न कभी जन्म लेती है और न कभी मरती है।)


परमात्मा कौन हैं?

परमात्मा वह सर्वोच्च आत्मा हैं, जो समस्त आत्माओं के पिता हैं।
राज योग में परमात्मा को शिव (कल्याणकारी), सुप्रीम सोल (सर्वोच्च आत्मा), ईश्वर, सर्वशक्तिमान आदि नामों से जाना जाता है।

परमात्मा के मुख्य गुण:

🔹 सर्वशक्तिमान – परमात्मा असीम शक्तियों का स्रोत हैं।
🔹 सर्वव्यापक नहीं, बल्कि एक विशिष्ट सत्ता – परमात्मा हर जगह व्याप्त नहीं, बल्कि एक सूक्ष्म सत्ता हैं।
🔹 शुद्धतम और निरंकार – उनका कोई भौतिक शरीर नहीं, वे प्रकाश स्वरूप हैं।
🔹 ज्ञान और प्रेम का महासागर – वे असीम ज्ञान, प्रेम, और करुणा से भरे हुए हैं।
🔹 न्यायकारी और दयालु – वे कर्मों का हिसाब रखते हैं और सभी आत्माओं का उद्धार करते हैं।

👉 परमात्मा कभी जन्म और मृत्यु के चक्र में नहीं आते, वे हमेशा मुक्त और शाश्वत होते हैं।

"परमात्मा न जन्म लेते हैं, न मृत्यु को प्राप्त होते हैं। वे सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान और सबसे पवित्र हैं।" – (भगवद गीता 10.3)


आत्मा और परमात्मा का संबंध

🔹 परमात्मा सभी आत्माओं के पिता हैं।
🔹 आत्मा और परमात्मा के बीच का संबंध प्रेम, शांति और शक्ति का संबंध है।
🔹 जब आत्मा परमात्मा से जुड़ती है (ध्यान द्वारा), तो वह शुद्ध, शक्तिशाली और आनंदमयी हो जाती है।
🔹 परमात्मा को याद करने से आत्मा पवित्रता और शक्ति प्राप्त करती है।

राज योग में यह संबंध ऐसे समझाया जाता है:
"जैसे सूर्य अपने प्रकाश से अंधकार को मिटाता है, वैसे ही परमात्मा अपने ज्ञान और प्रेम से आत्माओं की अज्ञानता और दुखों को दूर करते हैं।"


राज योग ध्यान द्वारा आत्मा और परमात्मा से जुड़ने की विधि

1. आत्मा की पहचान करें:

🔹 यह सोचें: "मैं शरीर नहीं, आत्मा हूँ।"
🔹 महसूस करें कि आप एक ज्योति बिंदु (प्रकाश का बिंदु) हैं, जो शरीर के मध्य (भृकुटि) में स्थित है।

2. परमात्मा का चिंतन करें:

🔹 यह महसूस करें कि परमात्मा एक दिव्य प्रकाश है, जो ब्रह्मलोक (परमधाम) में स्थित हैं।
🔹 उनसे दिव्य ऊर्जा प्राप्त करें।

3. प्रेम और शक्ति को आत्मसात करें:

🔹 महसूस करें कि परमात्मा आपको शांति, प्रेम, शक्ति और ज्ञान प्रदान कर रहे हैं।
🔹 आप हल्के, शक्तिशाली और आनंद से भरपूर हो रहे हैं।

4. अपने जीवन में परमात्मा के गुणों को अपनाएँ:

🔹 शांति को अपने स्वभाव में लाएँ।
🔹 नकारात्मकता से दूर रहें और सकारात्मक ऊर्जा फैलाएँ।


निष्कर्ष

आत्मा और परमात्मा का संबंध प्रेम और शक्ति का संबंध है।
राज योग ध्यान के माध्यम से आत्मा परमात्मा से जुड़कर शांति, प्रेम, और शक्ति प्राप्त कर सकती है।
जब आत्मा परमात्मा की याद में रहती है, तो उसका सारा अज्ञान मिट जाता है और वह दिव्यता से भर जाती है।

"मैं आत्मा हूँ, यह शरीर मेरा वाहन है। परमात्मा मेरे पिता हैं, और उनका प्रेम और शक्ति हमेशा मेरे साथ है।" 🙏✨

शनिवार, 4 मार्च 2017

राज योग ध्यान की विशेष विधि

राज योग ध्यान की विशेष विधि

राज योग ध्यान का उद्देश्य आत्म-चेतना को जाग्रत करना और परमात्मा (सुप्रीम एनर्जी) से जुड़ना है। यह विधि ब्रह्माकुमारी संस्थान द्वारा विशेष रूप से सिखाई जाती है, लेकिन इसे कोई भी व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में अपना सकता है।


राज योग ध्यान की सरल विधि (स्टेप-बाय-स्टेप गाइड)

1. स्थान और समय चुनें

✅ शांत और स्वच्छ स्थान पर बैठें।
✅ ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) या रात में सोने से पहले ध्यान करें।
✅ खुली हवा में या एकांत कमरे में बैठना अच्छा रहेगा।

2. आरामदायक मुद्रा में बैठें

✅ सुखासन, पद्मासन या कुर्सी पर रीढ़ सीधी रखते हुए बैठें।
✅ आँखें हल्की बंद या हल्की खुली रखें (पूर्ण रूप से बंद करना ज़रूरी नहीं)।

3. मन को शांत करें और विचारों को धीमा करें

✅ धीरे-धीरे गहरी साँस लें और छोड़ें।
✅ अपने मन को शांत करने के लिए कुछ क्षणों तक ध्यान दें कि आप सिर्फ एक आत्मा हैं—शरीर नहीं।
✅ यदि कोई विचार आए, तो उसे जबरदस्ती रोकने की कोशिश न करें, बल्कि उसे जाने दें।

4. आत्मा की पहचान और जागरूकता बढ़ाएँ

✅ खुद को शरीर से अलग एक ज्योति बिंदु (ऊर्जा का प्रकाश) के रूप में अनुभव करें।
✅ महसूस करें कि आपका अस्तित्व शुद्ध प्रकाश और ऊर्जा से बना है।
✅ यह आत्मा अजर-अमर है और शांति व प्रेम का स्रोत है।

5. परमात्मा से संबंध जोड़ें

✅ परमात्मा (सुप्रीम सोल) को असीम ऊर्जा, शुद्ध प्रकाश, और दिव्य ज्ञान के रूप में अनुभव करें।
✅ यह मानें कि परमात्मा (शिव) सदा शांत, प्रेमपूर्ण और शक्तिशाली ऊर्जा का स्रोत हैं।
✅ अपने मन में यह भावना लाएँ कि आप इस दिव्य ऊर्जा से जुड़ रहे हैं और उनकी शक्तियाँ आपको मिल रही हैं।

6. दिव्य ऊर्जा को आत्मसात करें

✅ महसूस करें कि परमात्मा की ऊर्जा आपके शरीर और आत्मा में प्रवेश कर रही है।
✅ यह दिव्य प्रकाश आपके सभी नकारात्मक विचारों, तनाव और भय को नष्ट कर रहा है।
✅ मन हल्का और सकारात्मक होता जा रहा है।

7. शांति और आनंद का अनुभव करें

✅ कुछ समय तक इस शांति की स्थिति में रहें।
✅ अपने अंदर आनंद, प्रेम और शक्ति को महसूस करें।
✅ इस सकारात्मक ऊर्जा को दिनभर बनाए रखने का संकल्प लें।


राज योग ध्यान में उपयोगी विचार (संकल्प)

🔹 "मैं एक शांत आत्मा हूँ, मेरा स्वभाव शांति है।"
🔹 "मैं अजर-अमर आत्मा हूँ, मेरा शरीर नश्वर है।"
🔹 "परमात्मा का दिव्य प्रकाश मुझे शक्ति और शांति प्रदान कर रहा है।"
🔹 "मैं सभी को प्रेम और सकारात्मकता प्रदान करता हूँ।"


राज योग ध्यान के विशेष लाभ

मानसिक शांति – तनाव, चिंता और नकारात्मकता कम होती है।
आत्म-विश्वास बढ़ता है – व्यक्ति अपने जीवन में ज्यादा आत्मनिर्भर और संतुलित बनता है।
सकारात्मक ऊर्जा मिलती है – मन, शरीर और आत्मा में नई ऊर्जा का संचार होता है।
रिश्तों में सुधार होता है – अहंकार, गुस्सा और नकारात्मक भावनाएँ कम होती हैं।
आध्यात्मिक उन्नति – आत्मा और परमात्मा से गहरा संबंध बनता है।


कैसे शुरुआत करें?

✅ रोज़ाना 10-15 मिनट से शुरुआत करें और धीरे-धीरे समय बढ़ाएँ।
✅ किसी अनुभवी राज योगी या ब्रह्माकुमारी संस्थान के ध्यान सत्र में भाग लें।
✅ नियमित अभ्यास करें और धैर्य बनाए रखें।

भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष (श्लोक 54-78)

 यहां भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) के श्लोक 54 से 78 तक का अर्थ और व्याख्या दी गई है। इन श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रह्म...