शनिवार, 26 जून 2021

श्री अरविंदो घोष

 श्री अरविंदो (15 अगस्त 1872 – 5 दिसम्बर 1950) भारतीय योगी, संत, लेखक, और स्वतंत्रता सेनानी थे। वे भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में एक महत्वपूर्ण नेता के रूप में कार्य करते हुए, भारतीय समाज और संस्कृति के आध्यात्मिक और सामाजिक पुनर्निर्माण के लिए समर्पित थे। श्री अरविंदो का जीवन और उनके विचार आज भी लोगों को प्रेरणा देते हैं। वे भारतीय धर्म, योग, दर्शन, और विज्ञान के गहरे अध्ययनकर्ता थे, और उन्होंने आध्यात्मिकता, योग, और राष्ट्रवादी विचारों के संयोजन से एक समृद्ध जीवन का निर्माण किया।

श्री अरविंदो ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में पूर्ण स्वराज की आवश्यकता पर बल दिया और भारतीय समाज को एक नया दिशा देने का कार्य किया। इसके अलावा, वे योग के उच्चतम रूपों के सिद्धांतज्ञ भी थे, जिनका उद्देश्य न केवल आत्म-निर्माण, बल्कि सम्पूर्ण मानवता का आध्यात्मिक उत्थान था।

श्री अरविंदो का जीवन:

श्री अरविंदो का जन्म 15 अगस्त 1872 को कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में हुआ था। उनका वास्तविक नाम आरोबिंदो घोष था। वे एक अंग्रेजी परिवार में जन्मे थे, और उनकी प्रारंभिक शिक्षा इंग्लैंड में हुई थी। वे बचपन से ही प्रतिभाशाली थे और साहित्य, दर्शन, और विज्ञान के विषयों में गहरी रुचि रखते थे।

श्री अरविंदो का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:
श्री अरविंदो ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने बंगाल के उग्रपंथी आंदोलन में भाग लिया और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ विरोध व्यक्त किया। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े हुए थे, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी विचारधारा के अनुरूप अलग राह अपनाई। उन्होंने देश के लिए पूर्ण स्वराज की बात की और यह भी कहा कि स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए आत्मनिर्भरता और आत्मशक्ति की आवश्यकता है

श्री अरविंदो के प्रमुख विचार और संदेश:

1. आध्यात्मिक जागृति और मानवता का उत्थान:

श्री अरविंदो ने माना कि केवल राजनीतिक स्वतंत्रता ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक जागृति और मानवता के आत्मिक विकास की आवश्यकता है। उनका विश्वास था कि समाज को केवल बाहरी बदलाव से नहीं, बल्कि आंतरिक बदलाव से सही दिशा मिल सकती है।

"आध्यात्मिक जीवन के बिना किसी भी सच्ची उन्नति की कल्पना नहीं की जा सकती।"

  • संदेश: समाज और राष्ट्र की सही उन्नति के लिए आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक जागृति जरूरी है।

2. पूर्ण स्वराज:

श्री अरविंदो का मानना था कि भारत को पूर्ण स्वराज (पूर्ण स्वतंत्रता) की आवश्यकता है, और यह स्वतंत्रता केवल बाहरी आक्रमण से मुक्ति तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसे आध्यात्मिक, मानसिक और सामाजिक रूप से भी हासिल करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि आत्मनिर्भरता और आत्म-विश्वास से ही हम स्वतंत्रता प्राप्त कर सकते हैं।

"भारत के लिए स्वराज का अर्थ केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि यह एक आंतरिक परिवर्तन की आवश्यकता है।"

  • संदेश: केवल राजनीतिक स्वतंत्रता ही नहीं, बल्कि मानसिक और आत्मिक स्वतंत्रता भी आवश्यक है।

3. योग और साधना:

श्री अरविंदो ने योग को केवल शारीरिक अभ्यास के रूप में नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति और जीवन के उद्देश्य को समझने का एक रास्ता माना। उन्होंने राजयोग, कर्मयोग, और ज्ञानयोग को एक साथ जोड़ते हुए बताया कि ये सभी साधन व्यक्ति को अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन करते हैं।

"योग केवल आत्मा की उन्नति का नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में परिवर्तन लाने का साधन है।"

  • संदेश: योग केवल शारीरिक या मानसिक शांति के लिए नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू में उन्नति लाने के लिए किया जाना चाहिए।

4. मानवता और समानता:

श्री अरविंदो का विश्वास था कि समाज में हर व्यक्ति में दिव्यता छिपी हुई है। वे जातिवाद और भेदभाव के खिलाफ थे और उनका यह मानना था कि हर मानव का उद्देश्य अपने भीतर की दिव्य शक्ति को पहचानना है।

"मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति उसकी आत्मा में है, और यह शक्ति उसे आत्म-साक्षात्कार से प्राप्त होती है।"

  • संदेश: मानवता का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मा का शुद्धिकरण और आत्मज्ञान प्राप्त करना है।

5. आध्यात्मिक और भौतिक जीवन का संयोजन:

श्री अरविंदो का यह भी मानना था कि आध्यात्मिकता और भौतिक जीवन अलग-अलग नहीं हैं, बल्कि दोनों का समन्वय होना चाहिए। उन्होंने कहा कि ध्यान और साधना के माध्यम से हम भौतिक जीवन को भी अधिक सामर्थ्यशाली और दिव्य बना सकते हैं।

"आध्यात्मिक जीवन और भौतिक जीवन को अलग नहीं करना चाहिए, वे एक-दूसरे के पूरक हैं।"

  • संदेश: आध्यात्मिक और भौतिक जीवन का संतुलन ही जीवन को सही दिशा प्रदान करता है।

श्री अरविंदो की प्रमुख रचनाएँ:

  1. "The Life Divine": यह उनकी एक प्रमुख रचना है, जिसमें उन्होंने जीवन के उद्देश्यों, दिव्य जीवन, और आत्मा की उन्नति के बारे में गहरे विचार व्यक्त किए हैं।

  2. "Essays on the Gita": इस पुस्तक में श्री अरविंदो ने भगवद गीता के गूढ़ अर्थों और सिद्धांतों पर विस्तृत विचार किया है।

  3. "The Synthesis of Yoga": इस पुस्तक में उन्होंने योग के विभिन्न प्रकारों का विवरण दिया है और बताया है कि कैसे एक व्यक्ति योग के माध्यम से जीवन के विभिन्न पहलुओं को जोड़ सकता है।

  4. "Sri Aurobindo's Collected Poems and Plays": यह श्री अरविंदो की कविताओं और नाटकों का संग्रह है, जिसमें उन्होंने जीवन, प्रेम, और आत्मा के विषयों पर अपनी गहरी अभिव्यक्तियाँ दी हैं।

श्री अरविंदो के प्रमुख उद्धरण:

  1. "उठो, जागो और तब तक न रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।"

    • संदेश: आत्मविश्वास और संघर्ष से हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं।
  2. "आध्यात्मिक जीवन में हमें अपनी मानसिकता को बदलने की आवश्यकता है, तभी हम सच्चे उद्देश्य की प्राप्ति कर सकते हैं।"

    • संदेश: आंतरिक परिवर्तन से ही हम बाहरी दुनिया में बदलाव ला सकते हैं।
  3. "आध्यात्मिकता का वास्तविक उद्देश्य मानवता के भले के लिए है।"

    • संदेश: आध्यात्मिक उन्नति का उद्देश्य केवल आत्मा के लिए नहीं, बल्कि समाज और मानवता की भलाई के लिए है।
  4. "सच्ची शक्ति अंदर से आती है, और यह शक्ति प्रेम और आत्मज्ञान से विकसित होती है।"

    • संदेश: प्रेम और आत्मज्ञान से हम अपनी आंतरिक शक्ति को जागृत कर सकते हैं।

श्री अरविंदो का योगदान:

स्वामी विवेकानंद के बाद श्री अरविंदो भारतीय समाज और धर्म के बारे में गहरे विचारक बने। उनके विचार आध्यात्मिकता, योग, और स्वतंत्रता संग्राम के संयोजन में नए दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक गहरी आध्यात्मिक दिशा दी, और कहा कि सच्ची स्वतंत्रता केवल बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक आत्मज्ञान से प्राप्त होती है

उनके योगदान ने भारतीय समाज में धर्म, संस्कृति, और आत्मनिर्भरता के प्रति जागरूकता बढ़ाई। उनका जीवन और विचार आज भी उन लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं जो आध्यात्मिक उन्नति, समाज सुधार, और व्यक्तित्व विकास के लिए प्रयासरत हैं।

शनिवार, 19 जून 2021

स्वामी विवेकानंद

 स्वामी विवेकानंद (12 जनवरी 1863 – 39 जुलाई 1902) भारतीय संत, योगी और धार्मिक विचारक थे, जिनका योगदान भारतीय समाज और वैश्विक धर्म-दर्शन में अनमोल है। उनका जीवन और विचारधारा आज भी युवाओं और समाज में प्रेरणा का स्रोत हैं। स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवन में न केवल भारतीय संस्कृति और धर्म का सम्मान बढ़ाया, बल्कि उन्होंने भारतीयों को आत्म-निर्भर बनने और अपने अंदर छुपी हुई शक्तियों को पहचानने के लिए प्रेरित किया।

स्वामी विवेकानंद का सबसे प्रसिद्ध उद्धरण है: "उठो, जागो और तब तक न रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए"। यह उद्धरण उनके जीवन का आदर्श वाक्य था, और यही संदेश उन्होंने अपने अनुयायियों को भी दिया।

स्वामी विवेकानंद का जीवन:

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था, और उनका वास्तविक नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। वे एक संपन्न बंगाली परिवार में जन्मे थे, लेकिन बचपन से ही उनके मन में समाज और मानवता के लिए कुछ महान कार्य करने की इच्छा थी।

स्वामी विवेकानंद के जीवन में रामकृष्ण परमहंस की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी, जिन्होंने उन्हें आध्यात्मिक शिक्षा दी और योग और भक्ति के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित किया। स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस के सिखाए गए तत्वों को दुनिया तक पहुँचाया और भारतीय संस्कृति और वेदांत के विचारों को पश्चिमी दुनिया में प्रस्तुत किया।

स्वामी विवेकानंद के विचार और संदेश:

1. आत्म-विश्वास:

स्वामी विवेकानंद ने आत्मविश्वास को सबसे महत्वपूर्ण गुण माना। उन्होंने हमेशा यह कहा कि यदि इंसान को अपने भीतर विश्वास है, तो वह किसी भी मुश्किल को पार कर सकता है और अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है।

"तुम्हारी कमजोरी तुम्हारे मन में है, तुम जैसा सोचते हो, वैसे बन जाते हो।"

  • संदेश: आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच से जीवन में कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।

2. सेवा और मानवता:

स्वामी विवेकानंद का मानना था कि ईश्वर की सबसे बड़ी पूजा इंसान की सेवा करना है। उन्होंने समाज में व्याप्त असमानताओं और अंधविश्वासों के खिलाफ आवाज उठाई और मानवता की सेवा को सर्वोत्तम धर्म माना।

"ईश्वर हर जगह है, लेकिन सबसे पहले उसे अपने भाई-बहनों में देखो।"

  • संदेश: भगवान की पूजा सिर्फ मंदिरों में नहीं, बल्कि मानवता की सेवा में भी होती है। हमें अपने समस्त प्रयासों को समाज के कल्याण के लिए समर्पित करना चाहिए।

3. धर्म और तात्त्विकता:

स्वामी विवेकानंद का मानना था कि धर्म केवल पूजा-पाठ या आडंबरों में नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति और सच्चे जीवन जीने में है। उन्होंने भारतीय संस्कृति की सच्ची धारणा को पुनः प्रकट किया और यह सिखाया कि हर व्यक्ति के अंदर दिव्य शक्ति होती है, जिसे जागृत करना चाहिए।

"धर्म वह नहीं है जो हम कहते हैं, धर्म वह है जो हम करते हैं।"

  • संदेश: धर्म केवल दिखावा नहीं, बल्कि हमारे आचरण और कार्यों से प्रकट होता है।

4. समाज सुधार और समानता:

स्वामी विवेकानंद ने भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद, ऊंच-नीच और अंधविश्वास के खिलाफ आवाज उठाई। उनका मानना था कि समाज में बदलाव लाने के लिए समानता और भाईचारे का प्रसार जरूरी है।

"तुम्हारे शरीर में भगवान का निवास है, तो तुम किसी से भी कम नहीं हो।"

  • संदेश: जाति और वर्ग के भेद से ऊपर उठकर हमें सभी मनुष्यों को समान मानना चाहिए, क्योंकि सभी में ईश्वर का रूप है।

5. योग और ध्यान:

स्वामी विवेकानंद ने योग और ध्यान के महत्व को भारतीय समाज और पश्चिमी दुनिया में उजागर किया। उन्होंने यह बताया कि योग के माध्यम से मनुष्य अपनी आंतरिक शक्ति को पहचान सकता है और अपने जीवन को संतुलित और शांतिपूर्ण बना सकता है।

"योग का उद्देश्य आत्मा का पूर्ण विकास है।"

  • संदेश: योग के माध्यम से हमें आत्मा और शरीर के सामंजस्य को समझना चाहिए, और इससे मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है।

6. वैश्विक दृष्टिकोण:

स्वामी विवेकानंद का मानना था कि भारतीय संस्कृति दुनिया के लिए एक उपहार है और वेदांत का संदेश सभी मानवता के लिए है। उन्होंने स्वयं को और दुनिया को एकता और सार्वभौमिकता के दृष्टिकोण से देखने का उपदेश दिया।

"तुम्हें किसी को नीचा दिखाने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि सभी लोग समान हैं।"

  • संदेश: सभी को समान दृष्टिकोण से देखना और किसी को नीचा नहीं समझना चाहिए।

स्वामी विवेकानंद की प्रमुख रचनाएँ:

स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवन के संक्षिप्त समय में कई महत्वपूर्ण लेखन और भाषण दिए, जिनमें उन्होंने भारतीय समाज, धर्म, योग, शिक्षा और जीवन के बारे में अपने विचार व्यक्त किए। उनके प्रमुख ग्रंथों और भाषणों में शामिल हैं:

  1. "योग वशिष्ठ": स्वामी विवेकानंद ने इस ग्रंथ में वेदांत और योग के बारे में गहन विचार प्रस्तुत किए हैं।

  2. "राजयोग": यह पुस्तक स्वामी विवेकानंद के योग और ध्यान के विषय में दिए गए विचारों का संग्रह है। इसमें उन्होंने राजयोग के सिद्धांतों को समझाया है, जो आत्मा के शुद्धिकरण और ध्यान की प्रक्रिया से संबंधित हैं।

  3. "कर्मयोग": स्वामी विवेकानंद ने इस पुस्तक में कर्म (कार्य) को एक साधना और सेवा के रूप में प्रस्तुत किया है। वे मानते थे कि कार्य करना ही ईश्वर के प्रति सबसे बड़ा योग है।

  4. "ज्ञानयोग": यह पुस्तक स्वामी विवेकानंद द्वारा ज्ञान और अद्वितीयता के बारे में दी गई शिक्षाओं का संग्रह है, जिसमें उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान और आत्मबोध की बातें की हैं।

स्वामी विवेकानंद के प्रमुख उद्धरण:

  1. "उठो, जागो और तब तक न रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।"

    • संदेश: कभी हार न मानें, हमेशा अपने लक्ष्यों की ओर अग्रसर रहें।
  2. "आपका विश्वास ही आपकी सफलता का आधार है।"

    • संदेश: यदि आप अपने ऊपर विश्वास रखते हैं, तो कोई भी मुश्किल आपको रोक नहीं सकती।
  3. "जो कुछ भी तुम कर सकते हो, वह तुम्हारे भीतर पहले से मौजूद है।"

    • संदेश: आत्मविश्वास से हर व्यक्ति अपने भीतर छिपी हुई शक्तियों को पहचान सकता है और उन्हें कार्य में ला सकता है।
  4. "खुद को जानो, यही आत्मज्ञान है।"

    • संदेश: अपने भीतर की वास्तविकता को समझना और आत्मबोध प्राप्त करना ही सच्चा ज्ञान है।

स्वामी विवेकानंद का योगदान:

स्वामी विवेकानंद का योगदान भारतीय समाज और वैश्विक दृष्टिकोण में अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा है। उनके विचारों ने न केवल भारतीय समाज को जागरूक किया, बल्कि दुनिया भर में भारतीय संस्कृति और योग की महिमा का प्रचार भी किया। उनका योगदान भारतीय राष्ट्रीयता, समाज सुधार, और व्यक्तित्व विकास के क्षेत्र में आज भी मार्गदर्शन प्रदान करता है।

स्वामी विवेकानंद का जीवन हमें यह सिखाता है कि जीवन में आत्मविश्वास, सेवा, और सच्ची भक्ति के माध्यम से ही हम अपने जीवन का उद्देश्य प्राप्त कर सकते हैं।

शनिवार, 12 जून 2021

संत एकनाथ

 संत एकनाथ (1533–1599) महाराष्ट्र के महान संत, कवि, और भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में से एक थे। वे वारकरी परंपरा के अनुयायी थे और भगवान विठोबा (विठ्ठल) के परम भक्त थे। संत एकनाथ ने समाज सुधार, भक्ति, और आध्यात्मिक साहित्य के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान दिया। वे अपने सरल, परोपकारी और समाज को जोड़ने वाले विचारों के लिए आज भी पूजनीय हैं।


जीवन परिचय:

  • संत एकनाथ का जन्म 1533 में महाराष्ट्र के पैठण नामक स्थान पर हुआ था। उनका परिवार धार्मिक और भक्ति से जुड़ा हुआ था।
  • वे बचपन से ही धर्म, भक्ति और अध्यात्म की ओर आकर्षित थे। संत एकनाथ ने स्वामी जनार्दन स्वामी को अपना गुरु बनाया और उनसे आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया।
  • उनका जीवन सादगी, समर्पण, और समाज सेवा का अद्भुत उदाहरण था। उन्होंने जाति, धर्म, और वर्ग भेदभाव के खिलाफ काम किया और समानता और एकता का संदेश दिया।

भक्ति और शिक्षाएँ:

संत एकनाथ ने अपने पदों और कार्यों के माध्यम से समाज में सामाजिक सुधार, समानता, और ईश्वर के प्रति प्रेम का संदेश दिया। उन्होंने जातिगत भेदभाव को नकारते हुए यह सिखाया कि सच्ची भक्ति से ही ईश्वर की प्राप्ति संभव है।

उनकी प्रमुख शिक्षाएँ थीं:

  1. सामाजिक समानता:

    • संत एकनाथ ने सभी जातियों और वर्गों को समान माना। वे दलितों और वंचितों के प्रति अत्यधिक करुणा और सम्मान का भाव रखते थे।
    • उन्होंने ऊँच-नीच, जात-पात और धार्मिक आडंबरों के खिलाफ आवाज उठाई।
  2. वारकरी परंपरा:

    • संत एकनाथ वारकरी संप्रदाय के अनुयायी थे और उन्होंने भक्ति के सरल और सच्चे मार्ग को प्रोत्साहित किया। उनकी भक्ति भगवान विठोबा (पंढरपुर के विठ्ठल) के प्रति समर्पित थी।
  3. भक्ति का सरल मार्ग:

    • उनका मानना था कि भक्ति को किसी जटिल प्रक्रिया या कर्मकांड की आवश्यकता नहीं है। ईश्वर को प्रेम और सच्चे हृदय से पुकारा जाए तो वे अवश्य सुनते हैं।
  4. अहंकार का त्याग:

    • उन्होंने अहंकार, क्रोध, और लोभ से दूर रहने की शिक्षा दी। उनका कहना था कि मनुष्य को विनम्र रहकर ईश्वर का नाम जपना चाहिए।
  5. समाज सेवा:

    • उन्होंने शिक्षा, धार्मिक सुधार और सामाजिक समानता के लिए अपने जीवन को समर्पित किया। गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद करना उनकी प्रमुख प्राथमिकता थी।

साहित्य और कृतियाँ:

संत एकनाथ ने अपने विचारों को साहित्य के माध्यम से व्यक्त किया। उनकी रचनाएँ मराठी भाषा में लिखी गईं और इनका प्रमुख उद्देश्य भगवान के प्रति भक्ति, समाज सुधार और अध्यात्म का प्रचार करना था।

उनकी प्रमुख रचनाएँ:

  1. एकनाथी भागवत:

    • यह संत एकनाथ की सबसे प्रसिद्ध कृति है, जिसमें उन्होंने भागवत पुराण के 11वें स्कंध की व्याख्या की है। इसे मराठी में सरल और सुलभ भाषा में लिखा गया, जिससे आम जनता इसे समझ सके।
  2. भावार्थ रामायण:

    • उन्होंने रामायण का मराठी अनुवाद लिखा, जिसे भावार्थ रामायण कहा जाता है। यह रामायण भगवान राम के आदर्श जीवन को सरल तरीके से प्रस्तुत करता है।
  3. अभंग और गवळणी:

    • संत एकनाथ ने भगवान विठोबा और समाज के लिए कई अभंग (भक्ति गीत) और गवळणी (गायन) लिखे। इन गीतों में भक्ति का सुंदर भाव होता है।
  4. रुक्मिणी स्वयंवर:

    • यह उनकी एक और महत्वपूर्ण कृति है, जिसमें उन्होंने भगवान कृष्ण और रुक्मिणी के विवाह का वर्णन किया।

प्रसिद्ध घटनाएँ:

  1. पवित्रता और धैर्य:

    • एक बार संत एकनाथ को एक उच्च जाति के व्यक्ति ने गुस्से में उन पर पानी फेंक दिया। इसके जवाब में संत एकनाथ ने बिना क्रोध किए नदी से पानी लाकर उस व्यक्ति पर फिर से छिड़का और कहा, "आपकी कृपा से मैं पवित्र हो गया।"
    • इस घटना ने उनकी विनम्रता और धैर्य को दिखाया।
  2. सामाजिक समरसता का उदाहरण:

    • एकनाथ ने सभी जातियों को मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति दी। उन्होंने समाज के सभी वर्गों को भक्ति के समान अवसर देने के लिए प्रयास किया।
  3. भूखे व्यक्ति की मदद:

    • एक बार वे भगवान विठोबा की पूजा के लिए भोजन बना रहे थे, लेकिन तभी एक भूखा व्यक्ति उनके पास आया। एकनाथ ने अपना सारा भोजन उस भूखे व्यक्ति को दे दिया और इसे ही सच्ची पूजा माना।

संत एकनाथ की मृत्यु:

संत एकनाथ ने 1599 में अपने जीवन का देह त्याग किया। उनकी समाधि महाराष्ट्र के पैठण में स्थित है। उनके समाधि स्थल पर हर साल हजारों भक्त उनकी शिक्षाओं को याद करने के लिए आते हैं।


संत एकनाथ का योगदान:

  1. सामाजिक सुधारक:

    • उन्होंने समाज में जातिवाद, धार्मिक कट्टरता, और ऊँच-नीच की अवधारणाओं को खत्म करने के लिए काम किया।
  2. भक्ति आंदोलन को प्रोत्साहन:

    • संत एकनाथ ने भक्ति को सरल और सभी के लिए सुलभ बनाया। उन्होंने अपने अभंगों और कीर्तन के माध्यम से भगवान के नाम का प्रचार किया।
  3. साहित्यिक योगदान:

    • उनकी रचनाएँ आज भी भक्ति साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में भगवान के प्रति प्रेम और समाज सुधार के संदेश दिए।

निष्कर्ष:

संत एकनाथ का जीवन भक्ति, समाज सेवा, और मानवता की मिसाल है। उनकी शिक्षाएँ आज भी हमें सिखाती हैं कि भक्ति में समानता और सरलता होनी चाहिए। उनके भक्ति गीत और साहित्य लोगों के दिलों में भक्ति और सद्भावना का संचार करते हैं। संत एकनाथ ने जिस समाज की कल्पना की थी, वह प्रेम, करुणा और समानता पर आधारित था।

शनिवार, 5 जून 2021

संत रविदास

 संत रविदास (1450–1520) भारतीय भक्ति आंदोलन के महान संत, कवि और समाज सुधारक थे। वे विशेष रूप से भक्ति, समानता, और मनुष्यत्व के संदेश के लिए प्रसिद्ध हैं। संत रविदास जी का जीवन और उनकी शिक्षाएं आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं। वे निर्मल हृदय, सच्चे प्रेम और सामाजिक समानता के प्रतीक माने जाते हैं। उनका योगदान विशेष रूप से किसी भी जाति, धर्म, या वर्ग के भेदभाव के बिना ईश्वर की भक्ति में विश्वास करने के लिए प्रेरित करने के रूप में देखा जाता है।

संत रविदास जी का जीवन:

संत रविदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के बनारस (वाराणसी) में हुआ था। वे एक चमार जाति में जन्मे थे, लेकिन उन्होंने अपनी भक्ति और काव्य के माध्यम से यह साबित किया कि व्यक्ति का धार्मिक और आत्मिक विकास जाति या वर्ग से ऊपर होता है। उन्होंने अपने जीवन में एक आदर्श दिखाया कि ईश्वर के प्रति भक्ति, साधना और प्रेम ही मुख्य रूप से महत्वपूर्ण है, न कि सामाजिक भेदभाव।

संत रविदास जी ने अपना जीवन समाज सुधार और लोगों को ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति में समर्पित किया। उन्होंने "मनुष्य को मनुष्य से जोड़े रखने" और "सभी के लिए समानता" का संदेश दिया।

संत रविदास जी के प्रमुख विचार और संदेश:

1. ईश्वर की एकता:

संत रविदास जी ने भगवान की एकता और सर्वव्यापीता को स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि भगवान एक ही हैं, जो सभी में हैं, और उनका नाम हर व्यक्ति के जीवन में शक्ति और शांति लाता है।

"रहमत साईं की, तुझ पर होगी,
हम गली में राम के, दरस देखेंगे।"

  • संदेश: ईश्वर के नाम में अनमोल शक्ति है, और उनका दर्शन हर किसी के जीवन में संभव है, चाहे वह किसी भी जाति या धर्म से हो।

2. समानता और भाईचारा:

संत रविदास जी ने समाज में जातिवाद और भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने यह संदेश दिया कि भगवान के सामने सभी समान हैं, और किसी भी व्यक्ति को उसकी जाति, धर्म या स्थिति के आधार पर नीचा नहीं समझना चाहिए।

"जाति पाती का भेद नहीं,
जो तुझे देखे वही ईश्वर है।"

  • संदेश: हमें किसी भी व्यक्ति को उसकी जाति या स्थिति के आधार पर अलग नहीं करना चाहिए। हर व्यक्ति में भगवान का रूप है।

3. भक्ति का सरल मार्ग:

संत रविदास जी के अनुसार, भक्ति किसी भी कठिन तपस्या या आडंबर से नहीं, बल्कि सच्चे मन से भगवान के प्रति प्रेम और श्रद्धा से की जाती है। उन्होंने भक्ति को सरल और सहज रूप में प्रस्तुत किया, जिससे सभी लोग भगवान से जुड़ सकें।

"जो तू सच्चा नाम जपे,
सर्वसुख से होता है मन प्रसन्न।"

  • संदेश: भगवान का नाम स्मरण और भक्ति से मन को शांति मिलती है और जीवन में सुख आता है।

4. आध्यात्मिक मुक्ति:

संत रविदास जी का मानना था कि संसार में हर व्यक्ति को आत्मज्ञान प्राप्त करना चाहिए और अपनी आत्मा को शुद्ध करना चाहिए। उनका संदेश था कि भक्ति और ध्यान के माध्यम से आत्मा को भगवान से मिलन होता है।

"गुरु की भक्ति से सच्चा सुख मिलता है,
रविदास ने इसे ही जीवन का उद्देश्य माना।"

  • संदेश: गुरु और भक्ति के मार्ग से आत्मा की मुक्ति प्राप्त होती है।

5. सच्ची सेवा:

संत रविदास जी ने अपनी रचनाओं में सेवा और समाज सेवा का महत्व बताया। उन्होंने समाज की भलाई और दुखियों की सेवा को सबसे बड़ा धर्म बताया।

"तू सेवा कर, जीवन का सत्य यही,
कभी न दुखी होगा यदि मन से सेवा की।"

  • संदेश: समाज में सेवा करना और दूसरों के दुखों में भागीदार बनना ही सच्चा धर्म है।

संत रविदास जी की प्रमुख रचनाएँ:

संत रविदास जी की भक्ति काव्य और पद्य रचनाएँ उनके जीवन के प्रमुख अंग थीं। उनकी रचनाओं में प्रभु के प्रति प्रेम और समर्पण की भावना प्रकट होती है। उनके पदों में भक्ति, सरलता और प्रेम का सुंदर मेल देखने को मिलता है।

1. रविदास जी के पद:

संत रविदास जी के बहुत से प्रसिद्ध पद (भक्ति गीत) आज भी गाए जाते हैं। उनके पदों में उन्होंने सरल शब्दों में भगवान की महिमा और समाज में समानता की बात की। उनका यह पद बहुत प्रसिद्ध है:

"हमें अपनी जाति से क्या काम,
हमें तो भगवान के चरणों में लगाना है नाम।"

  • संदेश: जातिवाद और भेदभाव से ऊपर उठकर हमें केवल भगवान के नाम की भक्ति करनी चाहिए।

2. रविदास के साखी:

संत रविदास जी के साखी (कहानी) और भजन बहुत प्रसिद्ध हुए हैं। उन्होंने कई साखियों में जीवन के सच्चे उद्देश्य, समाज सुधार और भक्ति के महत्व को बताया।

3. "रामेश्वर बानी":

संत रविदास जी का एक अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथ "रामेश्वर बानी" है, जिसमें उन्होंने ईश्वर के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति को व्यक्त किया।

संत रविदास जी के प्रमुख उद्धरण:

  1. "जिसे देखो वह राम का रूप है,
    सभी में वही प्रभु निवास है।"

    • संदेश: हर व्यक्ति में भगवान का वास है, हमें किसी भी व्यक्ति को उसके बाहरी रूप से नहीं देखना चाहिए।
  2. "जो तुझे देखे वही राम है,
    मन से तुझ को जान ले वही सच्चा प्रेम है।"

    • संदेश: भगवान के प्रेम में आत्मसमर्पण से ही सच्ची भक्ति प्राप्त होती है।
  3. "सच्चे प्रेम में समर्पण से,
    जीवन में मिलती है मुक्ति।"

    • संदेश: सच्चे प्रेम और समर्पण से आत्मा की मुक्ति होती है।

संत रविदास जी का योगदान:

  • जातिवाद का विरोध: उन्होंने अपने जीवन में जातिवाद और भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई और समानता का संदेश दिया। उन्होंने यह साबित किया कि भगवान के सामने सभी समान हैं।

  • भक्ति साहित्य का योगदान: संत रविदास जी ने सरल और सच्चे भक्ति गीतों और पदों के माध्यम से लोगों को भगवान के प्रति प्रेम और भक्ति का सही मार्ग बताया।

  • समाज सुधार: संत रविदास जी ने समाज में सुधार की दिशा में काम किया और लोगों को एक दूसरे के प्रति भाईचारे और प्रेम की भावना रखने के लिए प्रेरित किया।


संत रविदास के विचार आज भी समाज में महत्वपूर्ण हैं। उनकी शिक्षाएँ हमें यह सिखाती हैं कि धर्म, भक्ति और सेवा से ही जीवन में सच्ची शांति और आनंद पाया जा सकता है, और जाति या वर्ग से ऊपर उठकर सभी के साथ समान व्यवहार करना चाहिए।

भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष (श्लोक 54-78)

 यहां भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) के श्लोक 54 से 78 तक का अर्थ और व्याख्या दी गई है। इन श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रह्म...