शनिवार, 27 मार्च 2021

महर्षि वेदव्यास

 महर्षि वेदव्यास भारतीय धर्म, दर्शन और साहित्य के महान ऋषि माने जाते हैं। वे भारतीय संस्कृति के आधार स्तंभ हैं और उनके योगदान को अद्वितीय माना जाता है। वेदव्यास को भगवान विष्णु के अवतार के रूप में भी पूजा जाता है।

वेदव्यास के जीवन के बारे में:

  • जन्म: महर्षि वेदव्यास का जन्म द्वापर युग में हुआ था। उनके पिता महर्षि पराशर और माता सत्यवती थीं। उनका जन्म यमुना नदी के द्वीप पर हुआ था, इसलिए उनका एक नाम द्वैपायन भी है।
  • नाम: उनका मूल नाम कृष्ण द्वैपायन था। वे बाद में वेदव्यास कहलाए क्योंकि उन्होंने वेदों का विभाजन और व्यवस्था की।
  • अवतार: वेदव्यास को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।

वेदव्यास का योगदान:

  1. वेदों का विभाजन:
    महर्षि वेदव्यास ने चार वेदों - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद - का विभाजन और संकलन किया, जिससे उन्हें आम लोगों के लिए पढ़ना और समझना सरल हो गया।

  2. महाभारत:
    वेदव्यास ने महाकाव्य महाभारत की रचना की, जिसे "पंचम वेद" भी कहा जाता है। महाभारत विश्व का सबसे लंबा महाकाव्य है और इसमें भगवद गीता का दिव्य संदेश समाहित है।

  3. पुराणों की रचना:
    वेदव्यास ने 18 मुख्य पुराणों और उपपुराणों का संकलन किया, जिनमें विष्णु पुराण, शिव पुराण, भागवत पुराण आदि शामिल हैं।

  4. श्रीमद्भागवत महापुराण:
    भागवत पुराण, जो भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं और भक्ति पर आधारित है, वेदव्यास की प्रमुख रचनाओं में से एक है।

  5. योग और दर्शन:
    वेदव्यास ने ब्रह्मसूत्र की रचना की, जो अद्वैत वेदांत दर्शन का आधार है।

वेदव्यास और महाभारत:

महर्षि वेदव्यास महाभारत में स्वयं एक पात्र भी हैं। उन्होंने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की, जिससे वह कुरुक्षेत्र युद्ध का वर्णन धृतराष्ट्र को कर सके। वे महाभारत में पांडवों और कौरवों के पूर्वज भी हैं, क्योंकि उनके पुत्र विदुर, धृतराष्ट्र और पांडु के जन्मदाता माने जाते हैं।

गुरु पूर्णिमा:

महर्षि वेदव्यास की स्मृति में हर वर्ष गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन गुरुजनों का सम्मान किया जाता है।

वेदव्यास का संदेश:

महर्षि वेदव्यास ने ज्ञान, धर्म और भक्ति का संदेश दिया। उनके ग्रंथों ने न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में आध्यात्मिकता, जीवन मूल्यों और मानवता का प्रचार किया।

वे भारतीय संस्कृति के अमूल्य रत्न हैं और उनकी शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं।

शनिवार, 20 मार्च 2021

भारत: आध्यात्मिक गुरु और संत

 भारत में कई प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु और संत हुए हैं, जिन्होंने न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में अपने ज्ञान, शिक्षा और आध्यात्मिकता का प्रचार किया। इनमें से कुछ प्रमुख नाम हैं:

प्राचीन काल के संत:

  1. महर्षि वेदव्यास - वेदों और महाभारत के रचयिता माने जाते हैं।
  2. महर्षि वाल्मीकि - रामायण के रचयिता और आदिकवि।
  3. महर्षि पतंजलि: योगसूत्रों के रचयिता और आधुनिक योग के जनक।
  4. आदि शंकराचार्य - अद्वैत वेदांत के महान प्रचारक और शास्त्रों के व्याख्याकार।
  5. महावीर स्वामी - जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर।
  6. गौतम बुद्ध - बौद्ध धर्म के संस्थापक और अहिंसा के प्रवर्तक।

मध्यकाल के संत:

  1. संत कबीर - भक्ति और सूफी परंपरा के प्रतिनिधि, जिन्होंने सरल भाषा में दोहे रचे।
  2. मीरा बाई - कृष्ण भक्ति में डूबी हुई कवयित्री और भक्त।
  3. गुरु नानक देव - सिख धर्म के संस्थापक।
  4. संत तुलसीदास - रामचरितमानस के रचयिता।
  5. संत रविदास - समाज में समानता और आध्यात्मिकता का संदेश देने वाले संत।
  6. संत एकनाथ: महाराष्ट्र के संत, जिन्होंने भक्ति और सामाजिक सुधार के लिए काम किया।

आधुनिक काल के गुरु:

  1. स्वामी विवेकानंद - रामकृष्ण मिशन के संस्थापक, जिन्होंने योग और वेदांत को विश्व में फैलाया।
  2. श्री अरविंदो - आध्यात्मिकता और योग के महान विचारक।
  3. रवींद्रनाथ टैगोर: एक कवि और दार्शनिक, जिन्होंने भारतीय आध्यात्मिकता को कला और साहित्य के माध्यम से प्रस्तुत किया।
  4. परमहंस योगानंद - Autobiography of a Yogi के लेखक, जिन्होंने क्रिया योग को पश्चिम में लोकप्रिय बनाया।
  5. रमण महर्षि: आत्मविचार और ध्यान के माध्यम से आत्मज्ञान का मार्ग दिखाने वाले संत।
  6. रामकृष्ण परमहंस - भक्ति और अद्वैत वेदांत के अद्वितीय संत।
  7. सत्य साईं बाबा - सेवा और आध्यात्मिकता का प्रचार करने वाले संत।
  8. ओशो (रजनीश) - ध्यान और आधुनिक दृष्टिकोण के माध्यम से जीवन का संदेश देने वाले।

समकालीन गुरु:

  1. सद्गुरु जग्गी वासुदेव - ईशा फाउंडेशन के संस्थापक।
  2. माता अमृतानंदमयी (अम्मा) - अपनी करुणा और आलिंगन के लिए जानी जाती हैं।
  3. श्री श्री रविशंकर - आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन के संस्थापक।
  4. स्वामी रामदेव - योग और आयुर्वेद के प्रचारक।

ये संत और गुरु भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर हैं, जिन्होंने दुनिया को शांति, योग, ध्यान और आध्यात्मिकता का मार्ग दिखाया।

शनिवार, 13 मार्च 2021

आध्यात्मिक स्वतंत्रता

 आध्यात्मिक स्वतंत्रता (Spiritual Freedom) एक गहरे और व्यक्तिगत अनुभव की स्थिति है, जिसमें व्यक्ति अपने आंतरिक सत्य को पहचानता है और उसे बिना किसी बाहरी दबाव या सामाजिक मान्यताओं के पालन के स्वतंत्र रूप से जीता है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब कोई व्यक्ति अपने आत्मा, विचारों, और अस्तित्व के साथ सच्चाई की ओर यात्रा करता है और बाहरी दुनिया के प्रभावों से मुक्त होता है। आध्यात्मिक स्वतंत्रता का मतलब केवल बाहरी बंधनों से मुक्ति नहीं, बल्कि आंतरिक बंधनों, जैसे भ्रम, अज्ञान, भय, और अनिश्चितता से भी स्वतंत्रता प्राप्त करना है।

1. आध्यात्मिक स्वतंत्रता का महत्व

आध्यात्मिक स्वतंत्रता व्यक्ति को आंतरिक शांति, संतुलन और आनंद की अनुभूति प्रदान करती है। यह स्वतंत्रता केवल बाहरी मामलों में नहीं, बल्कि आंतरिक भावनाओं, मानसिक स्थितियों और जीवन के दृष्टिकोण में भी महसूस की जाती है। आध्यात्मिक स्वतंत्रता के कुछ मुख्य पहलु इस प्रकार हैं:

1.1 आध्यात्मिक जागरूकता:

जब कोई व्यक्ति अपने भीतर की आवाज़ को सुनता है और अपनी अंतरात्मा से जुड़ता है, तो वह स्वयं को बाहरी दुनिया के प्रभावों से मुक्त महसूस करता है। यह जागरूकता उसे अपने जीवन के उद्देश्य को पहचानने और सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है।

1.2 मानसिक और भावनात्मक स्वतंत्रता:

आध्यात्मिक स्वतंत्रता का संबंध मानसिक और भावनात्मक स्तर पर भी होता है। यह हमें अपने मानसिक जालों, भय, द्वंद्व और चिंता से मुक्ति दिलाती है। जब हम आंतरिक स्वतंत्रता की ओर बढ़ते हैं, तो हम बाहरी परिस्थितियों के प्रति अप्रभावित रहते हैं और अपनी आंतरिक शांति बनाए रखते हैं।

1.3 आध्यात्मिक विश्वास और आस्थाएँ:

आध्यात्मिक स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं कि हम अपने धार्मिक विश्वासों से दूर हो जाते हैं, बल्कि इसका मतलब है कि हम अपनी आस्थाओं को स्वतंत्र रूप से चुनते हैं और उन्हें बिना किसी दबाव के अपनाते हैं। यह हमें धार्मिक या आध्यात्मिक सिद्धांतों को अपनी आत्मा के अनुरूप स्वीकार करने की स्वतंत्रता देता है।

2. आध्यात्मिक स्वतंत्रता प्राप्ति के मार्ग

आध्यात्मिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के कई मार्ग हो सकते हैं, और हर व्यक्ति का मार्ग व्यक्तिगत और विशेष होता है। हालांकि, कुछ सामान्य तरीके जो आध्यात्मिक स्वतंत्रता प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं:

2.1 ध्यान (Meditation):

ध्यान एक शक्तिशाली साधना है जो हमें हमारे भीतर की दुनिया से जोड़ती है। यह मानसिक शांति और आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने का एक प्रमुख साधन है। ध्यान से हम अपने विचारों को नियंत्रित कर सकते हैं, मानसिक शांति प्राप्त कर सकते हैं, और अपने आंतरिक सत्य को जान सकते हैं।

2.2 स्वाध्याय (Self-study):

स्वाध्याय का मतलब है अपने आत्मिक ज्ञान को बढ़ाना। यह पुस्तकें पढ़ने, धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करने, और आध्यात्मिक शिक्षाओं को समझने से प्राप्त होता है। जब हम अपने ज्ञान और समझ को बढ़ाते हैं, तो हम बाहरी आस्थाओं और बंधनों से मुक्त हो सकते हैं और अपनी आत्मा के मार्ग पर चल सकते हैं।

2.3 प्रकृति से जुड़ाव:

प्रकृति से जुड़ने से हम अपने आंतरिक सत्य के करीब पहुँच सकते हैं। यह हमें अपने अस्तित्व का अनुभव कराने में मदद करता है और हमें शांति और स्वतंत्रता का अहसास दिलाता है। प्राकृतिक वातावरण में समय बिताना हमें अपने भीतर की ऊर्जा से जुड़ने का अवसर देता है और हमें आंतरिक स्वतंत्रता की ओर मार्गदर्शन करता है।

2.4 समाज सेवा और करुणा:

आध्यात्मिक स्वतंत्रता का एक पहलू यह भी है कि जब हम दूसरों की सहायता करते हैं और करुणा दिखाते हैं, तो हम अपने भीतर एक आंतरिक शांति और संतोष महसूस करते हैं। यह हमें अहंकार, द्वेष और ईर्ष्या से मुक्त करता है और हमें आत्म-ज्ञान और आध्यात्मिक स्वतंत्रता की ओर ले जाता है।

2.5 निर्विवाद जीवन:

आध्यात्मिक स्वतंत्रता पाने के लिए हमें अपने जीवन में साधारणता, विनम्रता और ईमानदारी को अपनाना चाहिए। जितना कम हम अपनी इच्छाओं और बाहरी प्रभावों से जुड़ते हैं, उतना ही अधिक हमें आंतरिक स्वतंत्रता की प्राप्ति होती है। एक निर्विवाद जीवन में हम बिना किसी मानसिक बोझ के जी सकते हैं।

3. आध्यात्मिक स्वतंत्रता और संतुलन

आध्यात्मिक स्वतंत्रता हमें संतुलन का अहसास भी देती है। यह हमें यह समझने में मदद करती है कि जीवन में विभिन्न पहलुओं का समन्वय और संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। संतुलन केवल भौतिक दुनिया में ही नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्तर पर भी जरूरी है। जब हम आंतरिक शांति और संतुलन प्राप्त करते हैं, तो हम किसी भी बाहरी परिस्थिति या व्यक्ति के प्रभाव में आने से बच सकते हैं।

4. आध्यात्मिक स्वतंत्रता के लाभ

आध्यात्मिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के बहुत से लाभ हैं:

  • आंतरिक शांति: आध्यात्मिक स्वतंत्रता हमें शांति और संतुष्टि प्रदान करती है, जिससे हम तनाव, चिंता और मानसिक बोझ से मुक्त हो जाते हैं।
  • स्मार्ट निर्णय क्षमता: जब हम अपनी आंतरिक शक्ति से जुड़े होते हैं, तो हम जीवन के विभिन्न निर्णयों में और अधिक स्पष्टता और समझ के साथ आगे बढ़ सकते हैं।
  • सभी परिस्थितियों में संतुलन: आध्यात्मिक स्वतंत्रता हमें जीवन की अनिश्चितताओं और चुनौतियों का सामना करने की शक्ति देती है।
  • समाज के प्रति जिम्मेदारी: यह हमें एक जिम्मेदार और सहिष्णु व्यक्ति बनाता है, जो समाज के भले के लिए कार्य करता है।

5. निष्कर्ष

आध्यात्मिक स्वतंत्रता केवल बाहरी बंधनों से मुक्ति प्राप्त करना नहीं है, बल्कि यह एक आंतरिक प्रक्रिया है, जिसमें हम अपने वास्तविक आत्म को पहचानते हैं और बाहरी दुनिया के प्रभावों से मुक्त होते हुए अपने जीवन के उद्देश्य को समझते हैं। यह स्वतंत्रता हमें शांति, संतुलन, और संतोष प्रदान करती है, और यह हमारे जीवन को सशक्त और उद्देश्यपूर्ण बनाती है। आध्यात्मिक स्वतंत्रता केवल आत्म-साक्षात्कार का साधन नहीं, बल्कि एक समग्र और समृद्ध जीवन जीने की कुंजी है।

शनिवार, 6 मार्च 2021

प्रकृति और सृष्टि का सम्मान

 प्रकृति और सृष्टि का सम्मान मानवता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि प्रकृति और सृष्टि हमें जीवन के आधारभूत तत्वों, जैसे वायु, जल, पृथ्वी, और ऊर्जा प्रदान करती हैं। इन तत्वों के बिना जीवन की कल्पना भी असंभव है। यह सिद्धांत न केवल हमारी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर में गहरे रूप से निहित है, बल्कि यह हमारे अस्तित्व और आने वाली पीढ़ियों के लिए भी अत्यावश्यक है। प्रकृति और सृष्टि के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करने से हम न केवल प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करते हैं, बल्कि समाज और मानवता के भले के लिए भी कार्य करते हैं।

1. प्रकृति और सृष्टि का महत्व

प्रकृति और सृष्टि जीवन के सभी पहलुओं को संतुलित और संरक्षित करने का कार्य करती हैं। यह जीवन के लिए एक अपार स्रोत है, जो हमें आहार, पानी, शुद्ध हवा, और अन्य संसाधन प्रदान करती है। प्रकृति का सम्मान करना, अपने पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र के प्रति जिम्मेदारी का निर्वहन करना है।

1.1 प्रकृति का संसाधन हमें जीवन के लिए प्रदान करती है:

  • वायु: जीवन के लिए ऑक्सीजन का मुख्य स्रोत है।
  • जल: पानी हमारे अस्तित्व का आधार है; पीने के पानी से लेकर कृषि और उद्योगों तक, जल जीवन के लिए आवश्यक है।
  • भूमि: भूमि पर ही हमारी खेती और अन्य प्राकृतिक संसाधन मौजूद हैं।
  • वन्यजीव: वनस्पतियाँ और पशु-पक्षी पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखते हैं और जैव विविधता का आधार हैं।

1.2 प्राकृतिक आपदाओं का कारण और समाधान:

प्रकृति और सृष्टि का सम्मान न करने से प्राकृतिक आपदाएँ जैसे बाढ़, सूखा, पर्यावरणीय प्रदूषण, और जलवायु परिवर्तन जैसे संकट उत्पन्न होते हैं। हमें इन समस्याओं से बचने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का सही तरीके से उपयोग करना चाहिए और पर्यावरण का संरक्षण करना चाहिए।

2. प्रकृति और सृष्टि के सम्मान के धार्मिक और सांस्कृतिक पहलू

प्रकृति का सम्मान न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों में प्रकृति और सृष्टि का सम्मान करने के कई उदाहरण मिलते हैं।

2.1 हिंदू धर्म:

हिंदू धर्म में प्रकृति को ईश्वर के रूप में पूजा जाता है। विभिन्न देवताओं और देवी-देवताओं को प्रकृति के रूपों में पूजा जाता है। उदाहरण के लिए:

  • गंगा माँ: गंगा नदी को माँ के रूप में पूजा जाता है और इसे जीवनदायिनी माना जाता है।
  • वृक्ष पूजा: पेड़ों को पवित्र माना जाता है और वृक्षों की पूजा की जाती है, जैसे बिल्वपत्र का पूजन भगवान शिव के लिए।
  • पृथ्वी माता: पृथ्वी को माँ के रूप में पूजा जाता है और इसे सम्मान दिया जाता है। “पृथिव्यै नमः” का अर्थ है पृथ्वी को सम्मान देना।

2.2 बौद्ध धर्म:

बौद्ध धर्म में भी प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन जीने का महत्व है। भगवान बुद्ध ने सिखाया कि सभी जीवों में आत्मा होती है और हमें उनके साथ अहिंसा और सम्मान का व्यवहार करना चाहिए। बौद्ध धर्म में प्रकृति के हर रूप का सम्मान किया जाता है, क्योंकि यह शांति और सद्भावना का प्रतीक है।

2.3 ईसाई धर्म:

ईसाई धर्म में भगवान ने सृष्टि का सृजन किया और उसे "अच्छा" कहा। इस धर्म के अनुसार, सृष्टि का संरक्षण और सम्मान करना हमारी जिम्मेदारी है, क्योंकि हम भगवान के संरक्षक हैं। बाइबल में यह उल्लेख है कि पृथ्वी और उसके संसाधनों को प्रभु ने हमें दिए हैं और इनका सही तरीके से उपयोग करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।

2.4 इस्लाम धर्म:

इस्लाम धर्म में भी पृथ्वी और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और सम्मान करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। क़ुरआन में उल्लेख है कि "खुदा ने प्रकृति को मानवता के लाभ के लिए सृजा है और हमें इसका संरक्षण करना चाहिए"। जल, भूमि और वृक्षों का संरक्षण इस्लाम में एक उच्च मूल्य है।

3. प्रकृति का सम्मान और पर्यावरण संरक्षण

प्रकृति का सम्मान करने का सबसे बड़ा तरीका है पर्यावरण का संरक्षण करना। इसके लिए हमें कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने चाहिए:

  • प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग: हमें जल, ऊर्जा, और अन्य संसाधनों का विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग करना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इनका उपयोग कर सकें।
  • वृक्षारोपण: वृक्षों का संरक्षण और वृक्षारोपण हमें जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद करता है। पेड़ न केवल ऑक्सीजन प्रदान करते हैं, बल्कि वे प्रदूषण को भी कम करते हैं।
  • कचरा प्रबंधन: प्लास्टिक और अन्य कचरे का सही तरीके से निस्तारण करना और पुनर्चक्रण (recycling) को बढ़ावा देना आवश्यक है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा का प्रयोग: सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, और जल ऊर्जा जैसे नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग प्राकृतिक संसाधनों को बचाने में मदद करता है।
  • पर्यावरणीय शिक्षा: लोगों को पर्यावरण संरक्षण के बारे में जागरूक करना और इसके प्रति जिम्मेदारी का अहसास दिलाना चाहिए।

4. प्रकृति और सृष्टि का सम्मान कैसे किया जा सकता है

  1. प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण: हमें जल, ऊर्जा, और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का सही तरीके से उपयोग करना चाहिए ताकि ये संसाधन भविष्य में भी उपलब्ध रहें।
  2. प्राकृतिक आपदाओं के प्रति जागरूकता: जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, और प्राकृतिक आपदाओं के खतरे से निपटने के लिए समाज में जागरूकता फैलानी चाहिए।
  3. वृक्षारोपण अभियान: हर व्यक्ति को कम से कम एक पेड़ लगाने का संकल्प लेना चाहिए और दूसरों को भी वृक्षारोपण के लिए प्रेरित करना चाहिए।
  4. स्मार्ट कचरा प्रबंधन: प्लास्टिक के उपयोग को कम करना और पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना पर्यावरण के लिए बेहद आवश्यक है।
  5. स्थिर और संतुलित कृषि: प्राकृतिक संसाधनों के आधार पर कृषि पद्धतियों को अपनाना जो पर्यावरण को नुकसान न पहुँचाएं, जैसे जैविक खेती, जल संरक्षण आदि।

5. निष्कर्ष

प्रकृति और सृष्टि का सम्मान हमारे अस्तित्व के लिए अत्यंत आवश्यक है। यह हमें न केवल जीवन के आधारभूत तत्व प्रदान करती है, बल्कि हमारे आत्मिक और मानसिक संतुलन में भी सहायता करती है। इसलिए, यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम प्रकृति और सृष्टि के साथ सामंजस्यपूर्ण और सम्मानपूर्वक व्यवहार करें। हमें यह समझना होगा कि प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन और पर्यावरण का अत्यधिक शोषण हमारी भविष्यवाणी और आने वाली पीढ़ियों के लिए खतरनाक हो सकता है। यदि हम प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करेंगे, तो हम एक सुरक्षित और स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित कर सकेंगे। प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन जीने से ही हम एक समृद्ध, खुशहाल और शांति से भरा हुआ समाज बना सकते हैं।

भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष (श्लोक 54-78)

 यहां भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) के श्लोक 54 से 78 तक का अर्थ और व्याख्या दी गई है। इन श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रह्म...