शनिवार, 25 अप्रैल 2020

5. न्यायप्रिय राजा की कहानी

 

न्यायप्रिय राजा की कहानी

प्राचीन समय में एक राजा था जो अपनी न्यायप्रियता और निष्पक्षता के लिए पूरे राज्य में प्रसिद्ध था। वह हर विवाद का हल बड़ी बुद्धिमानी और निष्पक्षता से निकालता था। एक दिन उसके न्याय की कठिन परीक्षा ली गई, जब उसे अपनी प्रजा के बीच एक जटिल विवाद का निर्णय करना पड़ा।


घटना का आरंभ

एक किसान और एक व्यापारी राजा के दरबार में पहुंचे। किसान ने कहा,
"महाराज, मैंने अपने खेत में एक गड़ा हुआ खजाना पाया है। लेकिन यह खजाना मेरा नहीं है, क्योंकि मैंने इसे नहीं गाड़ा। यह व्यापारी का हो सकता है, क्योंकि उसने मुझे यह जमीन बेची थी।"

व्यापारी ने उत्तर दिया:
"नहीं महाराज, यह खजाना मेरा नहीं है। मैंने जमीन बेची थी, लेकिन खजाने के बारे में मुझे कुछ पता नहीं। यह किसान का ही है, क्योंकि वह अब इस जमीन का मालिक है।"

दोनों ही खजाने को स्वीकारने से इनकार कर रहे थे, और राजा से निर्णय की उम्मीद कर रहे थे।


राजा की परीक्षा

राजा ने कुछ देर सोचा और फिर दोनों से पूछा,
"किसान, तुम्हारे पास संतान है?"
किसान ने उत्तर दिया, "हां, महाराज।"
फिर राजा ने व्यापारी से पूछा, "और तुम्हारे पास?"
व्यापारी ने कहा, "नहीं, महाराज। मेरी कोई संतान नहीं है।"

राजा ने तब निर्णय सुनाया:
"यह खजाना राज्य का है, लेकिन इसका उपयोग तुम्हारी संतानों के लाभ के लिए किया जाएगा। किसान को यह खजाना दिया जाएगा, क्योंकि उसने इसे ईमानदारी से राजा के समक्ष प्रस्तुत किया। व्यापारी को उसकी ईमानदारी के लिए सम्मानित किया जाएगा।"


परिणाम

राजा का यह निर्णय सुनकर दोनों बहुत खुश हुए। किसान ने खजाने को अपनी संतानों की शिक्षा और भलाई के लिए उपयोग किया। व्यापारी ने राजा की न्यायप्रियता की सराहना की और कहा कि उसका फैसला दोनों के लिए लाभदायक है।


बेताल का प्रश्न

बेताल ने राजा विक्रम से पूछा:
"क्या राजा का निर्णय उचित था? और यदि हां, तो क्यों?"


राजा विक्रम का उत्तर

राजा विक्रम ने उत्तर दिया:
"राजा का निर्णय बिल्कुल उचित था। उसने दोनों की ईमानदारी को ध्यान में रखते हुए खजाने का ऐसा उपयोग किया, जिससे समाज का लाभ हो। किसान और व्यापारी दोनों ने स्वार्थ त्याग कर सत्य का पालन किया, और राजा ने उनके योगदान का सम्मान किया।"


कहानी की शिक्षा

  1. न्याय में निष्पक्षता जरूरी है।
  2. ईमानदारी और सत्य का सम्मान करना चाहिए।
  3. संसाधनों का उपयोग समाज के कल्याण के लिए होना चाहिए।

शनिवार, 18 अप्रैल 2020

4. चालाक राजकुमार की कहानी

 

चालाक राजकुमार की कहानी

किसी राज्य में एक बुद्धिमान और चालाक राजकुमार रहता था। वह न केवल शूरवीर था, बल्कि अपनी तीव्र बुद्धिमत्ता के लिए भी प्रसिद्ध था। एक दिन पड़ोसी राज्य के राजा ने उसकी बुद्धिमत्ता को परखने के लिए उसे तीन कठिन पहेलियां भेजीं। यदि वह इन पहेलियों को हल कर लेता, तो दोनों राज्यों के बीच मित्रता हो जाती। लेकिन अगर वह विफल होता, तो युद्ध निश्चित था।


पहेली भेजने का कारण

पड़ोसी राज्य का राजा यह जानता था कि चालाक राजकुमार का राज्य संपन्न और शक्तिशाली है। वह यह देखना चाहता था कि क्या राजकुमार वास्तव में इतना बुद्धिमान है कि वह कठिन परिस्थितियों में सही निर्णय ले सके।


पहेली 1: सबसे मूल्यवान चीज क्या है?

पहली पहेली में पूछा गया:
"दुनिया की सबसे मूल्यवान चीज क्या है, जो हर किसी को चाहिए, लेकिन कोई भी उसे खरीद नहीं सकता?"

राजकुमार ने उत्तर दिया:
"समय। क्योंकि समय ही सबसे मूल्यवान है। इसे कोई खरीद नहीं सकता, लेकिन सही उपयोग करने पर यह जीवन को सफल बना देता है।"


पहेली 2: सबसे शक्तिशाली कौन है?

दूसरी पहेली में पूछा गया:
"इस संसार में सबसे शक्तिशाली कौन है, जिसे कोई हर नहीं सकता?"

राजकुमार ने उत्तर दिया:
"धैर्य। क्योंकि धैर्य के सामने कोई भी मुश्किल या शत्रु टिक नहीं सकता।"


पहेली 3: ऐसा कौन है जो सबसे बड़ा मित्र और शत्रु दोनों हो सकता है?

तीसरी पहेली थी:
"कौन ऐसा है, जो किसी के लिए सबसे बड़ा मित्र और सबसे बड़ा शत्रु बन सकता है?"

राजकुमार ने उत्तर दिया:
"मन। क्योंकि मन यदि वश में हो, तो सबसे बड़ा मित्र है। लेकिन यदि यह अनियंत्रित हो जाए, तो सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है।"


परिणाम

राजकुमार के बुद्धिमान उत्तरों से पड़ोसी राजा अत्यंत प्रभावित हुआ। उसने युद्ध की योजना त्याग दी और मित्रता का प्रस्ताव भेजा। दोनों राज्यों के बीच मित्रता हो गई, और राजकुमार की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई।


बेताल का प्रश्न

बेताल ने राजा विक्रम से पूछा:
"राजकुमार ने सही उत्तर दिए, लेकिन क्या पड़ोसी राजा का तरीका उचित था? और क्या राजकुमार को उसकी मित्रता स्वीकार करनी चाहिए थी?"


राजा विक्रम का उत्तर

राजा विक्रम ने कहा:
"पड़ोसी राजा का तरीका पूरी तरह उचित नहीं था। परीक्षा के माध्यम से मित्रता करना केवल शक्ति का प्रदर्शन है। लेकिन चूंकि राजकुमार ने बुद्धिमत्ता और धैर्य से उत्तर दिए, इसलिए उसने स्थिति को युद्ध में बदलने से बचा लिया। राजकुमार का मित्रता स्वीकार करना सही था, क्योंकि शांति और सहयोग युद्ध से बेहतर हैं।"


कहानी की शिक्षा

  1. बुद्धिमत्ता कठिन परिस्थितियों का समाधान है।
  2. धैर्य और सही सोच सबसे बड़ी ताकत है।
  3. मित्रता और शांति हमेशा युद्ध से श्रेष्ठ हैं।

शनिवार, 11 अप्रैल 2020

3. सच्चा मित्र कौन?

 

सच्चा मित्र कौन?

किसी समय, एक छोटे से राज्य में दो मित्र रहते थे। वे बचपन से साथ बड़े हुए थे और एक-दूसरे पर बहुत विश्वास करते थे। उनकी मित्रता पूरे गांव में प्रसिद्ध थी। लेकिन एक दिन एक घटना घटी जिसने उनकी मित्रता को परखने का अवसर दिया।


घटना का आरंभ

एक बार, दोनों मित्र व्यापार के लिए जंगल के रास्ते एक अन्य गांव जा रहे थे। जंगल में अचानक एक हिंसक शेर ने उन पर हमला कर दिया। दोनों भयभीत हो गए।

  • पहला मित्र: खतरा देखकर तुरंत निकट के एक पेड़ पर चढ़ गया और अपनी जान बचाने की कोशिश करने लगा।
  • दूसरा मित्र: पेड़ पर नहीं चढ़ सकता था, लेकिन उसने सुना था कि शेर मरे हुए व्यक्ति पर हमला नहीं करते। उसने तुरंत जमीन पर लेटकर सांस रोक ली, मानो वह मृत हो।

शेर उसके पास आया, सूंघा, और यह सोचकर कि वह मर चुका है, वहां से चला गया।


घटना के बाद

जब शेर चला गया, तो पहला मित्र पेड़ से नीचे उतरा। उसने दूसरे मित्र से मजाक में पूछा,
"भाई, मैंने देखा कि शेर तुम्हारे कान के पास कुछ फुसफुसा रहा था। वह क्या कह रहा था?"

दूसरे मित्र ने उत्तर दिया:
"शेर ने मुझे कहा कि सच्चे मित्र वही होते हैं जो संकट के समय साथ दें। जो मित्र खतरा देखकर भाग जाए, उसे मित्र नहीं समझना चाहिए।"

यह सुनकर पहला मित्र शर्मिंदा हुआ और उसने अपनी गलती स्वीकार की।


बेताल का प्रश्न

बेताल ने राजा विक्रम से पूछा:
"इन दोनों में सच्चा मित्र कौन था? और क्या दूसरे मित्र को पहले मित्र को क्षमा कर देना चाहिए?"


राजा विक्रम का उत्तर

राजा विक्रम ने कहा:
"सच्चा मित्र वही है जो संकट के समय साथ न छोड़े। दूसरे मित्र ने परिस्थिति का सामना किया और अपनी बुद्धिमानी से अपनी जान बचाई। पहले मित्र ने केवल अपनी जान की चिंता की, इसलिए उसे सच्चा मित्र नहीं कहा जा सकता।
जहां तक क्षमा की बात है, यदि पहला मित्र अपनी गलती को स्वीकार करे और सच्चे हृदय से क्षमा मांगे, तो दूसरे मित्र को उसे क्षमा कर देना चाहिए। क्योंकि मित्रता का आधार केवल विश्वास और समझदारी है।"


कहानी की शिक्षा

  1. सच्चा मित्र संकट में पहचाना जाता है।
  2. स्वार्थपूर्ण व्यवहार मित्रता को कमजोर करता है।
  3. गलती स्वीकार करना और क्षमा करना सच्चे संबंधों को बचा सकता है।

शनिवार, 4 अप्रैल 2020

2. राजा और उनकी सत्यवादी पत्नी की कहानी

 

राजा और उनकी सत्यवादी पत्नी की कहानी

प्राचीन समय में एक राजा था जो न्यायप्रिय और प्रजा का पालनकर्ता था। उसकी रानी भी अत्यंत गुणवान और सत्यवादी थी। दोनों का जीवन प्रेम और विश्वास पर आधारित था।

एक दिन, राजा ने सोचा कि वह रानी के सतीत्व और सत्यता की परीक्षा ले। यह विचार उसके मन में इसलिए आया क्योंकि उसे अपनी प्रजा को यह दिखाना था कि उसका परिवार भी धर्म और सत्य का पालन करता है।


राजा की परीक्षा योजना

राजा ने अपने एक वफादार मंत्री को बुलाया और कहा,
"तुम रानी को संकट में डालकर उसकी सच्चाई की परीक्षा लो। लेकिन ध्यान रखना कि इस परीक्षा के बारे में कोई और न जाने।"
मंत्री ने योजना बनाई और रानी के सामने झूठे आरोप लगाकर उसे बदनाम करने का प्रयास किया। उसने रानी पर चोरी और विश्वासघात का आरोप लगाया।


रानी का सत्य का पालन

रानी ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों का धैर्यपूर्वक सामना किया। उसने शांत चित्त से अपनी सच्चाई को सिद्ध करने का प्रयास किया। उसने कहा:
"मैंने कभी भी अपने पति, अपने धर्म, या अपने आदर्शों के विरुद्ध कोई कार्य नहीं किया है। यह मेरा सत्य और मेरा सतीत्व है।"

रानी ने न केवल अपनी सच्चाई साबित की, बल्कि मंत्री और उसके झूठे आरोपों को भी सबके सामने उजागर कर दिया।


राजा का पश्चाताप

जब राजा को यह पता चला कि रानी ने सभी परीक्षाओं को सच्चाई और धैर्य से पार किया, तो वह अपने निर्णय पर पछताया। उसने रानी से माफी मांगी और कहा,
"तुम्हारी सच्चाई ने मेरी आंखें खोल दीं। यह मेरी भूल थी कि मैंने तुम्हारी परीक्षा लेने का प्रयास किया।"

रानी ने राजा को क्षमा कर दिया, क्योंकि वह जानती थी कि राजा ने यह परीक्षा केवल सत्य और धर्म को साबित करने के लिए ली थी।


बेताल का प्रश्न

बेताल ने राजा विक्रम से पूछा:
"क्या राजा ने रानी की परीक्षा लेकर सही किया? क्या रानी को राजा को क्षमा करना चाहिए था?"


राजा विक्रम का उत्तर

राजा विक्रम ने कहा:
"राजा का निर्णय गलत था। किसी भी सच्चे और निष्ठावान व्यक्ति की परीक्षा लेना अनुचित है, विशेषकर जब वह रानी जैसी धर्मनिष्ठ हो। लेकिन रानी ने राजा को क्षमा करके यह सिद्ध किया कि सच्चे प्रेम और रिश्तों में क्षमा सबसे बड़ा गुण है। राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ, और रानी ने उसे सही मार्ग पर लौटाया।"


कहानी की शिक्षा

  1. सत्य और धैर्य: सच्चाई हमेशा परीक्षा में खरी उतरती है।
  2. क्षमा का महत्व: प्रेम और रिश्तों में क्षमा से बड़ा कोई गुण नहीं।
  3. नेताओं की जिम्मेदारी: न्यायप्रिय होना जरूरी है, लेकिन अपने करीबियों की निष्ठा पर शक करना अनुचित है।

भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष (श्लोक 54-78)

 यहां भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) के श्लोक 54 से 78 तक का अर्थ और व्याख्या दी गई है। इन श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रह्म...