शनिवार, 28 मार्च 2020

1. तीन ब्राह्मण और मृत राजकुमारी की कहानी

 

तीन ब्राह्मण और मृत राजकुमारी की कहानी

किसी समय की बात है, एक नगर में तीन ब्राह्मण युवक रहते थे। वे तीनों विद्वान, तपस्वी और सदाचारी थे। दुर्भाग्यवश, वे तीनों एक ही राजकुमारी से प्रेम करते थे। राजकुमारी न केवल अत्यंत सुंदर थी, बल्कि बुद्धिमान और गुणवान भी थी।

एक दिन अचानक राजकुमारी बीमार पड़ी और उसकी मृत्यु हो गई। तीनों ब्राह्मणों को यह दुःख सहन नहीं हुआ।


तीनों ब्राह्मणों का त्याग

  • पहला ब्राह्मण: उसने राजकुमारी के मृत शरीर को चिता पर जलने से रोक दिया और उसकी अस्थियों को एकत्रित करके एक सुरक्षित स्थान पर रखा।
  • दूसरा ब्राह्मण: उसने श्मशान के पास एक आश्रम बनाकर तपस्या शुरू कर दी। उसने प्रतिज्ञा ली कि वह राजकुमारी के बिना जीवन नहीं जीएगा।
  • तीसरा ब्राह्मण: उसने पूरे देश में घूम-घूमकर मंत्र और तंत्र का ज्ञान प्राप्त करना शुरू किया, ताकि वह राजकुमारी को जीवित कर सके।

राजकुमारी का पुनर्जीवन

कई वर्षों बाद तीसरा ब्राह्मण एक ऐसा मंत्र सीखने में सफल हुआ, जिससे वह मृत व्यक्ति को जीवित कर सकता था। वह तुरंत राजकुमारी की अस्थियों के पास पहुंचा और पहले ब्राह्मण से कहा कि वह उन्हें लाए। मंत्र के प्रभाव से राजकुमारी फिर से जीवित हो गई और पहले की तरह सुंदर और जीवंत हो गई।

अब समस्या यह थी कि तीनों ब्राह्मणों ने राजकुमारी को अपना जीवनसाथी बनाने का दावा किया।


बेताल का प्रश्न

बेताल ने राजा विक्रम से पूछा:
"इन तीनों में से कौन राजकुमारी का वास्तविक पति होने का हकदार है?"


राजा विक्रम का उत्तर

राजा विक्रम ने उत्तर दिया:
"वास्तविक पति वह है जिसने राजकुमारी की अस्थियों की रक्षा की, क्योंकि उसने उसे मृत शरीर के रूप में भी अपना माना। दूसरा ब्राह्मण त्यागी और तपस्वी था, लेकिन उसने पति का धर्म नहीं निभाया। तीसरा ब्राह्मण केवल राजकुमारी को जीवित करने का माध्यम बना, लेकिन उसका संबंध केवल उसके पुनर्जीवन से था। इसलिए, पहला ब्राह्मण ही राजकुमारी का वास्तविक पति है।"


कहानी की शिक्षा

यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा प्रेम केवल त्याग और तपस्या से नहीं, बल्कि निष्ठा और दायित्व निभाने से सिद्ध होता है।

शनिवार, 21 मार्च 2020

राजा विक्रमादित्य और बेताल

 विक्रम और बेताल की कहानियां भारतीय साहित्य की अद्भुत और लोकप्रिय कहानियों में से एक हैं। ये कहानियां संस्कृत ग्रंथ "बेताल पच्चीसी" से ली गई हैं, जिसे कवि सोमदेव ने लिखा है। इन कहानियों का मुख्य उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ नैतिक शिक्षा देना है।

कहानी का मुख्य कथानक:

राजा विक्रमादित्य एक न्यायप्रिय और पराक्रमी राजा थे। एक दिन, एक तांत्रिक ने उनसे अनुरोध किया कि वे एक विशेष सिद्धि प्राप्त करने के लिए श्मशान में एक बेताल (भूत) को पकड़कर लाएं। विक्रमादित्य ने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया।

बेताल की चालाकी:

बेताल एक पेड़ पर उल्टा लटका रहता है। हर बार जब राजा विक्रम उसे पकड़कर श्मशान की ओर ले जाते हैं, तो बेताल उन्हें एक कहानी सुनाना शुरू करता है। कहानी के अंत में वह राजा से एक सवाल पूछता है।
अगर राजा सही जवाब देते हैं, तो बेताल फिर से पेड़ पर लौट जाता है। लेकिन अगर राजा जवाब नहीं देते, तो बेताल उनके साथ चला जाएगा। राजा विक्रम को सच्चाई और न्याय के प्रति अपने ज्ञान के कारण हर बार सवाल का उत्तर देना पड़ता है, जिससे बेताल भाग जाता है।

25 कहानियों की श्रृंखला

बेताल ने राजा विक्रम को 25 कहानियां सुनाईं। हर कहानी में एक नैतिक शिक्षा छुपी होती थी। इन कहानियों का उद्देश्य राजा की बुद्धिमानी, नैतिकता और न्यायप्रियता की परीक्षा लेना था।

इन कहानियों में:

  • प्रेम और बलिदान की कहानियां थीं।
  • चालाकी और बुद्धिमत्ता की कहानियां थीं।
  • राजाओं, रानियों, व्यापारियों, साधुओं, और अन्य पात्रों के माध्यम से मानव जीवन के गहरे पहलुओं को उजागर किया गया था।

सारांश और शिक्षा

  1. साहस और निष्ठा: राजा विक्रमादित्य ने अपनी निष्ठा और साहस से हर चुनौती का सामना किया।
  2. बुद्धिमानी का महत्व: हर कहानी और समस्या को हल करते समय राजा की बुद्धिमत्ता और निर्णय लेने की क्षमता उजागर हुई।
  3. सत्य की विजय: अंत में, सत्य और न्याय की जीत हुई।

विक्रम और बेताल की कहानियां हमें यह सिखाती हैं कि जीवन में धैर्य, साहस, और सत्यनिष्ठा से हर चुनौती का सामना किया जा सकता है।

शनिवार, 14 मार्च 2020

राजा हरिशचन्द्र की कहानी

राजा हरिशचन्द्र की कहानी भारतीय इतिहास और संस्कृति में एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक कथा है। यह कथा सत्य, धर्म, और निष्ठा के आदर्श को दर्शाती है। राजा हरिशचन्द्र के जीवन की घटनाएँ हमें यह सिखाती हैं कि सत्य के मार्ग पर चलना हमेशा कठिन होता है, लेकिन अंत में सत्य और धर्म की विजय होती है। यह कथा विभिन्न भारतीय ग्रंथों में वर्णित है, खासतौर पर रामायण, महाभारत और अन्य पुराणों में।

राजा हरिशचन्द्र की पूरी कहानी:

1. राज्य और धर्म की स्थापना:

राजा हरिशचन्द्र अयोध्या के एक न्यायप्रिय और ईमानदार राजा थे। वे सत्यनिष्ठ थे और अपने राज्य में हमेशा धर्म का पालन करते थे। वे हमेशा अपनी प्रजा की भलाई के लिए काम करते थे और उनका शासन पूरी तरह से न्यायपूर्ण था। राजा का धर्म के प्रति इतना आदर्श था कि उनकी निष्ठा में कोई भी कमी नहीं थी।

2. ऋषि विश्वामित्र का आह्वान:

एक दिन, महान ऋषि विश्वामित्र ने राजा हरिशचन्द्र से एक बड़ा दान माँगा। राजा ने बिना किसी सोच-विचार के अपनी पूरी संपत्ति और साम्राज्य को दान देने का वचन दिया। इस दान को देने के बाद राजा के पास कुछ नहीं बचा। ऋषि विश्वामित्र की यह परीक्षा राजा के लिए प्रारंभिक कठिनाई का कारण बनी।

3. राज्य और धन की हानि:

राजा ने सत्य के पालन में इतना संकल्पित होकर अपनी सम्पत्ति दान में दे दी कि जल्द ही उनका पूरा राज्य और धन समाप्त हो गया। अब राजा हरिशचन्द्र को अपने परिवार के भरण-पोषण की चिंता होने लगी। उन्होंने अपने राज्य की उपयुक्त देखरेख और प्रजा के भले के लिए हमेशा खुद को समर्पित किया था, लेकिन अब उनका जीवन बेहद कठिन हो गया था।

4. पुत्र की मृत्यु और श्मशान कार्य:

राजा हरिशचन्द्र के जीवन की सबसे कठिन परीक्षा तब आई जब उनके पुत्र की मृत्यु हो गई। राजा अपने पुत्र की अंतिम क्रिया करने के लिए श्मशान घाट गए, लेकिन वहां भी उन्हें धोखा मिला। श्मशान घाट के पुजारी ने राजा से पैसे की मांग की, ताकि वह अपने पुत्र की अंत्येष्टि कर सकें। राजा के पास पैसे नहीं थे, लेकिन उन्होंने अपनी निष्ठा और सत्य को बनाए रखते हुए इस कठिन समय का सामना किया।

5. सत्य और धर्म की परीक्षा:

राजा हरिशचन्द्र ने पूरी दुनिया की कठिनाइयों को सहते हुए भी सत्य का साथ नहीं छोड़ा। भगवान इंद्र और अन्य देवताओं ने उनकी परीक्षा ली, लेकिन हर बार राजा ने धर्म और सत्य का पालन किया। अंततः भगवान शिव और अन्य देवताओं ने राजा की तपस्या और सत्य के प्रति निष्ठा को देखा और उन्होंने राजा को अपने राज्य, परिवार, और धन को पुनः लौटाया।

6. राजा की वापसी और विजय:

भगवान इंद्र ने राजा की सत्यनिष्ठा को मान्यता दी और उन्हें उनका खोया हुआ राज्य, धन, और परिवार लौटाया। राजा हरिशचन्द्र का जीवन पूरी दुनिया के लिए एक आदर्श बन गया। उन्होंने सिद्ध किया कि सत्य का मार्ग कठिन होता है, लेकिन अंततः वही मार्ग सही और न्यायपूर्ण होता है।

निष्कर्ष:

राजा हरिशचन्द्र की कहानी हमें यह सिखाती है कि सत्य और धर्म की राह हमेशा कठिन होती है, लेकिन हमें हर परिस्थिति में सत्य का पालन करना चाहिए। राजा हरिशचन्द्र का जीवन हमें यह प्रेरणा देता है कि हमें हमेशा अपने आदर्शों पर टिके रहना चाहिए, चाहे जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं। उनके जीवन में जो भी संघर्ष आया, उन्होंने कभी भी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।

इस प्रकार, राजा हरिशचन्द्र की कहानी भारतीय संस्कृति में एक अमूल्य धरोहर है, जो हमें सत्य और धर्म के प्रति निष्ठा का महत्व समझाती है।

शनिवार, 7 मार्च 2020

श्री हनुमान चालीसा

 Shree Hanuman Chalisa

(श्री हनुमान चालीसा)


श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि।
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि॥

श्री गुरु के चरण-कमलों की धूल से अपने मन रूपी दर्पण को साफ करके मैं पवित्र रामजी के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – इन चारों फलों को देने वाला है।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार॥

अपने को बुद्धिहीन और निर्बल मानते हुए मैं पवनपुत्र हनुमानजी का स्मरण करता हूँ। हे हनुमानजी! मुझे बल, बुद्धि और विद्या दीजिए तथा मेरे दुखों और दोषों का नाश कर दीजिए।

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥

हनुमानजी की जय हो, जो ज्ञान और गुणों के सागर हैं। तीनों लोकों में जिनकी महिमा प्रसिद्ध है।

राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥

आप भगवान राम के दूत हैं और असीम बल के धाम हैं। आप अंजना के पुत्र और पवन देव के पुत्र कहलाते हैं।

महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥

आप महावीर और अत्यंत पराक्रमी हैं। आप बुरी बुद्धि को दूर करने वाले और शुभ विचारों के साथी हैं।

कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा॥

आपका स्वरूप सोने के समान चमकता हुआ है। आप सुंदर वस्त्र धारण किए हुए हैं, कानों में कुंडल और घुंघराले बाल हैं।

हाथ वज्र औ ध्वजा विराजै।
काँधे मूँज जनेउ साजै॥

आपके हाथ में वज्र और ध्वजा शोभायमान हैं। आपके कंधे पर पवित्र जनेऊ (यज्ञोपवीत) सुशोभित है।

शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग वंदन॥

आप भगवान शंकर के अवतार और केसरी के पुत्र हैं। आपकी महिमा और पराक्रम का संसार भर में वंदन होता है।

विद्यावान गुणी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥

आप ज्ञानवान, गुणवान और अत्यंत कुशल हैं। आप भगवान राम के कार्य करने के लिए सदा तत्पर रहते हैं।

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥

आप भगवान राम के चरित्र सुनने में आनंद लेने वाले हैं। आपके हृदय में श्री राम, लक्ष्मण और सीता निवास करते हैं।

सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥

आपने छोटा रूप धारण करके माता सीता को दर्शन कराया और भयानक रूप धारण करके लंका को जला दिया।

भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचंद्र के काज सँवारे॥

आपने विशालकाय रूप धारण करके राक्षसों का संहार किया और श्रीरामचंद्रजी के कार्य को सफल बनाया।

लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुवीर हरषि उर लाये॥

आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मणजी का जीवन बचाया। इस पर श्री रघुवीर (राम) ने आपको हर्षित होकर अपने हृदय से लगा लिया।

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥

श्रीरामचंद्रजी ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा कि आप मेरे लिए भरत के समान प्रिय भाई हैं।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥

श्रीरामचंद्रजी ने कहा कि हजारों मुख वाले शेषनाग भी तुम्हारी महिमा गाते हैं। ऐसा कहकर भगवान ने आपको गले से लगा लिया।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥

सनक, सनंदन, सनातन और सनतकुमार जैसे ऋषि, ब्रह्माजी, महर्षि नारद, देवी सरस्वती और शेषनाग सभी आपकी महिमा का गान करते हैं।

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥

यमराज, कुबेर, दिक्पाल (दिशाओं के रक्षक देवता) आदि आपकी महिमा का वर्णन करने में असमर्थ हैं। कवि और विद्वान भी इसका पूरा वर्णन नहीं कर सकते।

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥

आपने सुग्रीवजी पर उपकार किया। उन्हें भगवान राम से मिलवाया और उनका खोया हुआ राज्य वापस दिलाया।

तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥

आपके परामर्श को विभीषण ने स्वीकार किया, जिससे वे लंका के राजा बने। यह सारी दुनिया जानती है।

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥

सूर्य जो हजारों योजन की दूरी पर है, उसे आपने एक मीठा फल समझकर निगल लिया।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गए अचरज नाहीं॥

आपने भगवान श्रीराम की अंगूठी को अपने मुख में रख लिया और समुद्र को पार कर गए। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं थी, क्योंकि आप महान पराक्रमी हैं।

दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥

संसार के सभी कठिन कार्य आपके आशीर्वाद से सरल हो जाते हैं।

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥

आप श्रीराम के द्वार के रक्षक हैं। आपकी आज्ञा के बिना कोई भी भीतर प्रवेश नहीं कर सकता।

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥

जो कोई भी आपकी शरण में आता है, वह सभी सुख प्राप्त करता है। जब आप रक्षक हों, तो उसे किसी का भय नहीं रहता।

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक ते काँपै॥

आप अपने बल को स्वयं नियंत्रित रखते हैं। आपकी गर्जना से तीनों लोक (स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल) कांप उठते हैं।

भूत पिसाच निकट नहीं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥

भूत-पिशाच आपके नाम का स्मरण करने मात्र से पास नहीं आते। आपका नाम लेने से भय दूर हो जाता है।

नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥

जो कोई निरंतर वीर हनुमान का जप करता है, उसके सभी रोग और कष्ट समाप्त हो जाते हैं।

संकट ते हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥

जो व्यक्ति मन, वचन और कर्म से हनुमानजी का ध्यान करता है, उसके सभी संकट हनुमानजी दूर कर देते हैं।

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा॥

भगवान राम, जो महान तपस्वी और राजा हैं, उनके सभी कार्यों को आप सफल बनाते हैं।

और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै॥

जो कोई भी अपनी मनोकामना लेकर आपके पास आता है, वह उसे असीम जीवन के फल के रूप में प्राप्त करता है।

चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥

आपकी महिमा चारों युगों (सत्य, त्रेता, द्वापर और कलियुग) में फैली हुई है। आपकी प्रसिद्धि से समस्त संसार प्रकाशमान है।

साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥

आप साधु-संतों के रक्षक हैं और राक्षसों का नाश करने वाले हैं। आप श्रीराम के प्रिय हैं।

अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥

आपको माता सीता ने आशीर्वाद दिया है कि आप अष्ट सिद्धियों (आठ प्रकार की शक्तियाँ) और नौ निधियों (धन और संपत्ति) के दाता हैं।

राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥

आपके पास श्रीराम का नाम रूपी अमृत है। आप सदा श्रीराम के सेवक बने रहते हैं।

तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥

आपके भजन से भगवान राम की कृपा प्राप्त होती है। यह जन्म-जन्मांतर के सभी दुखों को समाप्त कर देता है।

अंतकाल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥

अपने जीवन के अंत में भक्त भगवान राम के परम धाम को प्राप्त करता है और अगले जन्म में भी हरि भक्त के रूप में जन्म लेता है।

और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥

किसी अन्य देवता के प्रति मन केंद्रित करने की आवश्यकता नहीं है। केवल हनुमानजी की सेवा करने से सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं।

संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥

हनुमानजी का स्मरण करने से सभी संकट कट जाते हैं और सभी प्रकार के दुख समाप्त हो जाते हैं।

जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरु देव की नाई॥

हे हनुमानजी, आपकी जय हो। कृपया मेरी गुरु के समान सहायता करें।

जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥

जो व्यक्ति इस सुंदरकांड का सौ बार पाठ करता है, वह सभी बंधनों से मुक्त हो जाता है और महान सुख प्राप्त करता है।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥

जो इस हनुमान चालीसा का पाठ करता है, उसे सिद्धि प्राप्त होती है। इसके साक्षी स्वयं शिवजी हैं।

तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥

तुलसीदास कहते हैं कि मैं सदा भगवान राम का सेवक हूँ। हे हनुमानजी, कृपया मेरे हृदय में निवास करें।

पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुरभूप॥

हे पवनपुत्र हनुमानजी, आप संकटों को हरने वाले और मंगल स्वरूप हैं। कृपया राम, लक्ष्मण और सीता सहित मेरे हृदय में निवास करें।

सुन्दर काण्ड हनुमान विराचा।
पढ़त सुनत तुलसी सुख साचा॥

सुंदरकांड हनुमानजी की अद्भुत गाथा है। इसका पाठ और श्रवण करने से तुलसीदास को सच्चा सुख मिला है।

राम कृपा जेहि संतन उपजाई।
सकल काज सुफल कर आई॥

भगवान राम की कृपा से उत्पन्न हुई यह गाथा हर कार्य को सफल बनाती है।


भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष (श्लोक 54-78)

 यहां भागवत गीता: अध्याय 18 (मोक्ष संन्यास योग) के श्लोक 54 से 78 तक का अर्थ और व्याख्या दी गई है। इन श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रह्म...